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तन्त्र अधिकार
मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
लजालु (छुइमुई),शिखंडिका (गुंजा,चिरमी), रील (करीर, तीक्ष्ण कंटक, निष्पत्रक, करीला, कैर, टेंटी, करु पेंचू आदि नामों से जानते हैं), अंकोल (ढेरा, अकोसर, अकोड़ा, अकोरा, आदि नाम भी हैं), ऊँटकटारा (ल्हैया, घोढ़ा, चोढ़ा, उत्कंटो, काटेचुम्बक भी कहते हैं) ,छोंकर (छोटे-छोटे कांटों वाली झाड़ी, शमी, तुगा, शक्तु फला शमीर, शिवाफली, लक्ष्मी, छेकुर, छिकुरा,खीजड़ी आदि कहते है),अपराजिता (कोमल, कालीजर, धन्वन्तरि, बिष्णुकान्ता), अपामार्ग (चिरचिटा, लटजीरा, ओंगा, शिखरी, अघेड़ों, पुठकंडा, चिचड़ा ),छोटी कटेरी (भटकटैया, कंटकारी), बज्रदन्ती(कटसरैया, पियाबांसा, पीत सैरेयक भी कहते हैं।),
निर्गुण्डी (इसे सम्हालू, सिन्धू, भूतकेशी भी) कहते हैं। (2) जन्मनक्षत्र वृक्ष का फल- जो मनुष्य अपने जन्म नक्षत्र के वृक्ष को औषधि आदि
के काम में लाता है, उसके आयु, लक्ष्मी स्त्री पुत्रादि नष्ट हो जाते हैं और जन्म नक्षत्र वृक्ष को जल आदि के द्वारा बढ़ाने से आयु आदि की वृद्धि होती है।
( 103 ) चार्ट में देखें जन्म नक्षत्र के वृक्ष - नक्षत्र वृक्ष नक्षत्र
वृक्ष 1.अश्वनी कुचला 2.भरणी
आंवला 3.कृतिका गूलर,सत्यनाशी 4.रोहिणी
जामुन 5.मृगशिरा
खेर 6.आर्द्रा
अगर 7.पुनर्वसु बांस 8. पुष्य
पीपल 8.अनु नागकेशर 10. मघा
बड़ 11.पूर्वा ढाक 12. उत्तरा
पाकर 13.हस्त पाढ़ 14. चित्रा
बेल 15.स्वाति अर्जुन 16 विशाखा
रामववूर 17.अनुराधा - पुन्नाग
18.ज्येष्ठा
लोध 19.मूल साल
20. पूर्वाषाढा - जलवेत 21.उत्तरा अ. - पलास
22. पूर्वाषाढा - जलवेत 23.घनिष्ठा - खजेड़ा
24. पूर्वाषाढा जलवेत 25.पूर्वाभाद्रपद - आम
26. उत्तराभाद्रपद - नीम। 27.रेवती
महुआ (3) सिद्ध मिट्टी की परिभाषा- राज द्वार, चोर या कुम्हार के हाथ की, उत्तम नदी के
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