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________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र, यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर इस तंत्र विद्या से मनुष्य सुख शान्ति और समृद्धि प्राप्त कर सकता है और वह सुख शान्ति समृद्धि भौतिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी प्राप्त कर सकता I भारतीय वाङ्मय में तंत्र - साहित्य का क्षेत्र बहुत विशाल है । यदि धर्म विशेष से संबद्धता को लेकर इसका विभाजन करें तो वह ब्राह्मण-तंत्र, बौद्ध-तंत्र तथा जैन- तंत्र इन तीन भागों में विभक्त होता है । ब्राह्मण - तंत्र की भी तीन शाखाएँ हैं- वैष्णव आगम (तंत्र), शैव आगम (तंत्र), शाक्त- आगम (तंत्र) । इन सभी में प्रचुर मात्रा में साहित्य सर्जित हुआ है। फिर भी ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मण - तंत्र बाड्मय में शाक्त तंत्र का साहित्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इसी तरह बौद्ध तंत्र तथा जैन तंत्र में भी पुष्कल मात्रा में साहित्य का प्रणयन हुआ । एक समय भारत में बौद्ध तांत्रिकों का सर्वत्र जाल-सा बिछ गया था। उनके चार मुख्य पीठ थे- जालन्धर पीठ, कामाख्या पीठ, पूर्ण गिरि पीठ और औड्डयान पीठ। बीच के युग में स्वार्थान्ध, अल्पज्ञ लोगों ने तंत्र विद्या का बहुत दुरुपयोग किया, जिससे लोक-मानस में तंत्रों के प्रति अनास्था और अविश्वास का भाव पैदा हो गया। उनके अध्ययन और अनुशीलन का क्रम अवरुद्ध जैसा हो गया। तंत्रों में मंत्र भी प्रयोग में आते हैं और यंत्र भी । तत्रं में मंत्र का प्रयोग कभी-कभी आवश्यक भी होता है क्योंकि उससे तंत्र की शक्ति द्विगुणित हो जाती है । ब्राह्य दृष्टि से तंत्र आकर्षण, मोहन, मारण, उच्चाटन आदि का मार्ग बतलाता है । किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से जैसा कि ऊपर कहा गया है कि वह मुक्ति का मार्ग भी बतलाता है। आकर्षण, मोहन, व वशीकरण मंत्र वश्य-कर्म के तीन भाग हैं। मंत्र, यंत्र व तंत्र । इन तीनों के द्वारा इनका प्रयोग होता है। कल्प- प्रकरण में इनके अनेक प्रयोग दिए हैं । यहा कुछ फुटकर तांत्रिक प्रयोग दिए जा रहे हैं। उनमें भी विद्वेषण, उच्चाटन व मारण कर्म के के अतिघातक प्रयोगों को सर्वथा छोड़ दिए हैं। क्योंकि ये बड़े उग्र व मलिन प्रयोग हैं, सर्वसाधारण में उन्हें प्रचलित करना हमने उचित नहीं समझा। जो प्रयोग मैं दे रहा हूं, उसके लिए भी साधकों से मेरा नम्र निवेदन है कि किसी अनिष्ट व दुष्ट भावना से ये प्रयोग कभी काम में न लायें। क्योंकि अपने किये हुए दुष्कर्मों के पाप से अनेक जन्मों में दुख, पीड़ा, कष्ट भोगना पड़ता है। तंत्र के प्रकार आकर्षण - कोई व्यक्ति निर्दिष्ट स्थान की ओर आकर्षित हो या किसी व्यक्ति या समूह का ध्यान व्यक्ति- विशेष की ओर विशेषतः खिचे, उसे, खूब चाहे, मान दे इज्जत दे उसे आकर्षण कहते हैं । मोहन- जो किसी प्राणी के मन पर अत्यन्त प्रभाव डाले, जो कहे वह करे, उसको सम्मोहन कहते है। 428
SR No.009382
Book TitleTantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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