SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तन्त्र अधिकार ____ मुनि प्रार्थना सागर मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र डाल दें तो गया व्यक्ति वापस आ जाता है। (4) गया व्यक्ति वापिस आए :-घर से गये व्यक्ति का फोटो टेपरिकार्ड के स्पीकर के सामने लगाकर मूल मंत्र का कैसेट चलाए ४३ दिन ऐसा करने से व्यक्ति वापिस आ जाएगा। (5) रविपुष्य नक्षत्र में छुई मुई के पंचाग को ग्रहण करके छाया में सुखाकर फिर जो मनुष्य कई दिनों से खो गया हो, उसके कपड़े में बांध देवें, त्रिकाल उस कपेड़े पर कोड़े मारें, तो खोया मनुष्य आता है। ( 55 ) गृह क्लेश (कलह) निवारण हेतु (1) ताल को मढे में पीसकर मिट्टी सहित पुतली बनाएं। उस पुतली को जिसके गृह में गादिया जाए उसके घर का गृह क्लेश समाप्त हो जाता है। (2) कई लोगों के लाख प्रयत्नों के बावजूद भी उनके घर में बरकत नहीं हो पाती है अथवा उनके घर में बहुत ज्यादा अशान्ति बिना किसी ठोस कारण के रहती है ऐसे ___ लोगों को निम्न में से कोई भी एक या अधिक प्रयोग लाभ दे सकता है(3)घर के किसी बच्चे का प्रथम गिरने वाला दॉत तिजोरी में संभाल कर रखे किन्तु यह दाँत जमीन पर न गिरा हो। (4) मगंलवार के दिन प्राप्त होने वाले काले कौंए का 'पर' सहेजकर रखें। (5) काले घोड़े की स्वतः छोड़ी गई नाल को लाकर ऊर्ध्व रूप से घर के मुख्य द्वार की चौखट पर ठोक दें। (6) विशाखा नक्षत्र में निर्वस्त्र होकर नीम की जड़ उत्तर दिशा की ओर उगी जड़ को कतर कर लाएं और उसे किसी के घर में डाल देने से वहां कलह होता है। जड़ को दूर करने से ही कलह से निवृत्ति होती है। (7) संतान कलह से मुक्ति :- चित्रा नक्षत्र में शनिवार को रक्त गुंजा मूल घर में रखने से दुर्घटना से बचाव एवं सन्तान कलह से मुक्ति मिलती है। (8) दांपत्य कलह निवारण हेतु :- रात को सोते समय पति अपने सिरहाने सिन्दूर व पत्नी कपूर रखें। प्रात:काल पत्नी कपूर जला दें व पति सिन्दूर को घर में कहीं गिरा दें। (9) गृह कलह दूर :- यदि घर में झगड़ा होता हो, अशान्ति रहती हो तो निश्चय ही घर में कोई टूटा बर्तन, शीशा, चक्की का पाट, खुंटी आदि कुछ वस्तु रखी हुई है, अत: उसे तुरन्त दूर कर दें। 452
SR No.009382
Book TitleTantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy