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सप्तम् अध्याय
अथाऽतो गुल्मचिकित्सितं व्याख्यास्यामः।
___ इति ह समाहुरात्रेयादयो महर्षयः । ___f : विद्रधि तथा वृद्धिरोग चिकित्सा व्याख्यान निरूपण के बाद गुल्म केत्सा का व्याख्यान करेंगें ऐसा आत्रेयादि महर्षियों ने कहा था।
वातज गुल्म की चिकित्सागुल्म बद्धशकृद्वातं वातिक तीव्रवेदनम्।
रूक्षशीतोद्भवं तैलैः साधयेद्वातरोगिकैः।। पानाऽन्नाऽन्वासनाऽभ्यगः स्निग्धस्य स्वेदमाचरेत् ।
आनाहवेदनास्तम्भविबन्धेशु विशेषतः।। स्रोतसां मार्दवं कृत्वा जित्वा मारूतमुल्वणम्।. . मित्त्वा विबन्धं स्निग्धस्य स्वेदो गुल्ममपोहति।। f: पुरीष तथा अपान वायु अवरूद्ध तीव्र वेदना वाले वार्तिक रूक्ष तथा . 1 से उत्पन्न गुल्म रोग को वात शामक तैलों से चिकित्सा करें और पूर्वोक्त शामक तैल के पान, अन्न में मिलाकर भोजन अनुवासन वस्ति तथा अभ्यगं लेस) द्वारा स्निग्ध गुल्म के रोगी का स्वेदन करें। आनाह, वेदना, स्तम्भ तथा न्ध में विशेषकर स्वेदन करें। स्वेदन स्रोतसों को मुलायम कर प्रकुपित वायु को त कर तथा विबन्ध को भेदनकर स्निग्ध रोगी के गुल्म को दूर करता है।
वातज गुल्म में स्नेहपान तथा वस्ति कर्मस्नेहपानं हितं गुल्मे विशेषेणोर्ध्वनाभिजे।
• पक्वाशयगते बस्तिरूभयं जठराश्रये ।। F: नाभि के ऊर्ध्व भाग में स्थित वात गुल्म में स्नेहपान विशेष रूप से कर है। पक्वाशय (मलाशय) गत वात गुल्म में वस्ति (निरूहण तथा वासन वस्ति) तथा जठर (नाभि तथा आन्त्र) में स्थित गुल्म में स्नेहन तथा वस्ति . । दोनों करें।
वात गुल्म में अन्न पान.. दीप्तेऽग्नौ वातिके गुल्मे विबन्धेऽनिलवर्चसोः।
बृंहणान्यनपानानि स्निग्धोष्णानि प्रदापयेत् ।। : वातज गुल्म में अग्नि के प्रदीप्त रहने पर तथा मल एवं अपान वायु
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