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________________ 17 करता हा . शर्करा पातन चिकित्सापिचुकगकोल्लकतकशाकेन्दीवरजैः फलैः।। पीतमुष्णाम्बु सगुडं शर्करापातनं परम्।। अर्थ : पिचु (नीम), केला, अंकोल फल, रीठा का फल, सागवान का फल तथा कमलगट्टा समभाग इन सब का चूर्ण गुड़ मिलाकर थोड़ा गरम जल से पान करने पर शर्करा को अच्छींतरह निकाल देता है। शर्करा पातन की दूसरी चिकित्साक्रौच्चोष्टरासभास्थीनि श्वदंष्ट्रा तालपत्रिका। अजमोदा कदम्बस्य मूलं बिल्वस्य चौषधम्। पीतानि शर्करां भिन्द्युः सुरयोश्णोदकेन वा।। अर्थ : गोखरू, मुसली, अजमोदा, कदम्ब की जड़, बेल की जड़ तथा सोंठ समभाग इन सब के चूर्ण को मद्य तथा उष्ण जल के साथ पीन से शर्करा का भेदन करता है। अश्मरी पातन के लिए गोखरू बीज का प्रयोग. . . नृत्यकुण्डलबीजानां चूर्ण माक्षिकसंयुतम् । अविक्षीरेण सप्ताहं पीतमश्मरिपातनम् ।। अर्थ : गोखरू के बीजों का चूर्ण मधु मिलाकर भेड़ के दूध के साथ एक सप्ताह तक पीने से अश्मरी को गिरा देता है। __ अश्मरी पातनार्थ सहिजन मूल का प्रयोग क्वाथश्च शिग्रुमूलोत्थः कटूष्णोऽश्मरिपातनम् । अर्थ : सहिजन की जड़ का क्वाथ थोड़ा गरम जल के साथ पीने से अश्मरी. को गिरा देता है। ' शर्करा तथा अश्मरी में तिलादि का क्षार तिलापामार्गकदलीपलाशयवसम्भवः ।। क्षारः पेयोऽविमूत्रेण शर्करास्वश्मरीषु च। अर्थ : तिल, अपामार्ग, केला, पलाश तथा यव इन सब का क्षार भेड़ के मूत्र के साथ शर्करा तथा अश्मरी रोग में पान करें। शर्करा तथा अश्मरी में विविध योगकपोतवगकामूलं वा पिबेदेकं सुरादिभिः ।। तत्सिद्धं वा पिबेत्क्षीरं वेदनाभिरूपदुतः। .. हरीतक्यस्थिसिद्धं वा साधितं वा पुनर्नवैः।। क्षीरान्नभुग बर्हिशिखामूलं वा तण्डुलाम्बुना। मूत्राघातेशु विभजेदतः शेषेष्वपि क्रियाम् ।। अर्थ : कपोतवंडा (ब्राह्यीमूल) या केवल ब्राह्मी मद्य आदि के साथ पान करें अथवा
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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