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________________ प्रथम अध्याय अथातोऽर्शसां चिकित्सितं व्याख्यास्यामः। इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः।। अर्थ : मदाव्यय चिकित्सा व्याख्यान के बाद अर्श चिकित्सा का व्याख्यान करेंगे ऐसा आत्रेयादि महर्षियों ने कहा था। .. . अर्श रोग में क्षार, दाह तथा भास्त्र कर्म का उपक्रम काले साधरणे व्यभ्र. नातिदुर्बलमर्शसम्। विशु०कोष्ठं लघ्वल्पमनुलोमनमाशितम् ।। शुचिं कृतस्वस्त्ययनं मुक्तविण्मूत्रमव्यथम्। . भायने फलके वाऽन्य-नरोत्सगे व्यपाश्रितम् ।। पूर्वेण कायेनोतानं प्रत्यादित्यगुदं समम्। समुन्नतकटीदेशमथ यन्त्रणवाससा।। सक्थ्नोः शिरोधरायां च परिक्षिप्तमृजुस्थितम्। आलम्बितं परिचरैः सर्पिशाऽभ्यक्तपायवे ।। ततोऽस्मै सर्पिषाऽभ्यक्तं निदध्यादृजु यन्त्रकम्। भानैरनुसुखं पायौ ततो दृष्ट्वा प्रवाहणात् ।। यन्त्रे प्रविष्टं दुर्नाम प्लोतगुण्ठितयाऽनु च। भालाकयोत्पीडय मिशग् यथोक्तविधिना दहेत् ।। क्षारेणैवामितरत्क्षासेण ज्वलनेन वा। महद्वा बलिनश्छित्त्वा वीतयन्त्रमथातुरम्।। __ स्वभ्युक्तपायुजघनमवगाहे निधापयेत्। निर्वातमन्दिरस्थस्य ततोऽस्याचारमादिशेत् ।। ___ एकैकमिति सप्ताहात्सप्ताहात्समुपाचरेत् । अर्थ : साधारण समय (श्रावण, कार्तिक, चैत्र माह या शरद वसन्त ऋतु) में आकाश में बादल न रहने पर यदि रोगी अधिक दुर्बल न हो तो वमन-विरेचन द्वारा कोष्ठ शुद्ध कर तथा हल्का थोड़ा तथा अनुलोमक (मल प्रवर्तक) भोजन खिलाकर, स्नान आदि से पवित्र, स्वस्ति वाचन आदि कराकर, मल-मूत्र त्याग से निवृत्त व्यथा रहित, अर्श के रोगी को शयन फलक (शयन की चौकी) पर या किसी मनुष्य की गोदी में बैठाकर शरीर का उपरि भाग उत्तान तथा सूर्य के समाने गुदा को स्थिर कर, यन्त्र या वस्त्र से कटिप्रदेश को ऊँचा कर, दोनों
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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