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________________ 3 अल्पाल्पमल्पं समलं निर्विड्वा सप्रवाहिकम् ।। दधितैलघृतक्षीरैः सशुण्ठीं सगुडां पिबेत् । स्विन्नानि गुडतैलेन ज्ञक्षयेद्वदराणि वा । । गाढविविहितैः शार्कर्ब हुस्नेहैस्तथा रसैः । क्षुधितं भोजयेदेनं दधिदाडिमसाधितैः । । शाल्योदनं तिलैमषैर्मुद्गैर्वा साधु साधितम् । शुण्ठया मूलकपोतायाः पाठायाः स्वस्तिकस्था वा । । स्नुषायवानीकर्कारूक्षीरिणीचिर्भटस्य वा । उपोदिकाया जीवन्त्या बाकुच्या वास्तुकस्य वा ।। सुवचलायाश्चुजेर्वा लोणिकाया रसैरपि । कूर्मवर्तकलोपाकशिखितित्तिरिकौक्कुटैः । । अर्थ: जो अतिसार का रोगी आम दोषों के पच जाने तथा अग्नि के प्रदीप्त रहने पर फेन तथा पिच्छा से युक्त रूक-रूक कर बार-बार, थोड़ा-थोड़ा, मल-र - सहित या विना मल का और प्रवाहिका के साथ मल का तयाग करता है वह दही तैल, घृत, तथा दूध के साथ गुड़ तथा सोंठ के चूर्ण को पान करे। अथवा उबाले हुए बेर के फलों को गुड़ तथा तैल के साथ भक्षण करे । अथवा बुभुक्षित अतिसार के रोगी को बाढ विटक अर्श के लिए कहे गये अधिक स्नेह युक्त शाक, स्नेह, तथा तथा आनार दाना के रस खिलाये । अथवा तिल, माष तथा मूंग के साथ अच्छी तरह सिद्ध किया हुआ जडहन धान का भात खिलाये । अथवा सोंठ कच्ची मूली, पाठा, स्वस्तिक, अथवा स्नुषा, अजवायन, ककड़ी, क्षीरी वृक्ष तथा चिरमिट (फूट) अथवा पोई, जीवन्ती, वाकुची, वथुआ अथवा सुश्चला (हुरहुर), चुंज्ज (चोंच) अथवा लोन इन सब के शाकं तथा साथ जड़हन धान का भात खायें। पक्वातिसार में बिल्वादि यवागूबिल्वमुस्ताक्षिभैषज्यधातकीपुष्पनागरैः । पक्वातिसारजित्तक्रे यवागूर्दाधिकी तथा । । 'कपित्थकच्छुराफज्जीयूथिकावटशेलुजैः । दाडिमोशणकार्पासीशाल्मलीमोचपल्लवैः ।। अर्थ : बेल, नागर मोथा, अक्षिभैषज्य (लोध) धाय का फूल तथा सोंठ समभाग इन सब के पकाये जल तथा मट्ठा में या दही में बनाई यवागू पक्वातिसारनाशक है। कैथ, केवाछ बीज, कांज्जी, चमेली, वरगद तथा लिसोड़ा के पत्तों समभाग इन सब के पकाये जल में या अनार सण, कपास तथा सेमल के पत्तों के पकाये जल तथा दही में सिद्ध यवागू पक्वातिसार को नष्ट करता है। प्रवाहिका में बिल्वादिखल कल्को बिल्वशलाटूनां तिलकल्कश्च तत्समः । 35
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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