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________________ पकावें और शीतल हो जाने पर मथनी से मथकर जो घृत निकलता है उस घृत में चौगुना सेहुँड़ का दूध मिलाकर पकावे। यह स्नुहीघृत हरीतकी घृत के समान गुण वाला है । अथवा दूध एक द्रोण (16 किलो), सेहुँड़ का दूध आधा प्रस्थ (500 ग्राम) इन दोनों को पकाकर दही बनावें और मथनी से मथकर घृत निकाले और घृत के चतुर्थांश निशोथ का कल्क मिलाकर पुनः विधिवत् घृत सिद्ध करें। यह घृत भी पूर्वोक्त हरीतकी घृत के समान गुणवाला है । अथवा घृत एक प्रस्थ (1 किलो) दूध आठ किलो मे सेहुँड़ का दूध एक पल (50 ग्राम) तथा निशोथ 6 पल (300 ग्राम) का कल्ल मिलाकर विधिवत् घृत सिद्ध करें। यह घृत हरीतकी घृत के समान गुणवाला है। इन घृतों को " पीने के बाद पेया, अथवा मीठा दूध पान करे। घृत के पच जाने पर या विरेचन हो जानेपर सोंठ मिलाकर विधिवत् पकाये थोड़ा गरम जल को पान करे। इसके बाद पेया तदनन्तर कुरथी का यूष पान करे। इस क्वाथ को पीने के बाद भी रोगी का उदर जब रूक्ष रहे तब तीन दिन तक भोजन कराने के बाद पुनः घृत पिलाये । इसी प्रकार आनुपूर्वी क्रम से बार-बार घृत पान करे। इन सिद्ध घृतों को कुशल चिकित्सक प्रयोग करें। इस घृत को गुल्म रोग, गर दोष तथा उदर रोग की शान्ति के लिए पान करें । उदर रोग में पीलु घृतपीलुकल्कोपसिद्धं वा घृतमानाहमेदनम् । तैल्वकं नीलिनीसर्पिः स्नेहं वा मिश्रकं पिबेत् ।। हृतदोषः क्रमादश्नन् लघुशाल्योदनं प्रति । अर्थ : अथवा उदर रोग में आनाह को दूर करने के लिए पीलु वृक्ष के फल के कल्क से सिद्ध घृत, तिल्वक घृत नलिनी घृत या मिश्रक स्नेह पान करें । • इस प्रकार दोनों के निकल जाने पर क्रमशः पेया- विलेपी आदि खाने के बाद फिर जड़हन धान के चावल का भात थोड़ा-थोड़ा भोजन करें । उदर रोग में हरीतकी का प्रयोगउपयुज्जीत जठरी दोषशेषनिवृत्तये ।। हरीतकीसहस्र वा गोमूत्रेण पयोऽनुपः । सहस्रं पिप्पलीनां वा स्नुकुक्षीरेण सुभावितम् ।। पिप्पलों वर्धमानां वा क्षीराशी वा शिलाजतु । तद्वद्वा गुग्गुलुं क्षीरं तुल्यार्द्र करसं तथा । । अर्थ : पूर्वोक्त प्रकार से उदर रोग पीड़ित व्यक्ति विरेचन के बाद भी अवशिष्ट दोषों की निवृत्ति के लिए एक हजार हरीतकी गोमूत्र के साथ सेवन करे और केवल भोजन में दूध पान करे। अथवा सेहुँड़ के दूध से प्रभावित एक हजार 116
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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