SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होते हैं। भोजन के बाद सहसा मुख पर शीतल जल का सेचन हितकर है। विश्लेषण : सभी वमन रोगों में आमाशय की विकृति होती है। जब दोष उभड़कर ऊपर आते हैं तो मुख के द्वारा निकलने लगते हैं ऐसी अवसथा में रोगी को उपवास कराना चाहिए और रूखा अन्न तथा फल का रस देना चाहिए। जब इससे शन्ति न मिले लगातार वमन होता रहें, रोगी बलिष्ठ हो तो व्याधि विपरीतार्थकारी वमन रोग में वमन का प्रयोग करना चाहिए। इससे आमाशय में संचित दोष वेग से बाहर निकल आते हैं और वमन शान्त हो जाता है। यदि इससे भी वमन थोड़ा होता हो तो विरेचन देना चाहिए। इससे स्रोतसों का मुख तथा दोष अधः (नीचे) चले जातो हैं। यह किसी अन्य कारण से उत्पन्न वमन की चिकित्सा नहीं है किन्तु स्वतन्त्र वमन हो तो उसकी चिकित्सा है। वातज छर्दि की चिकित्साहन्ति मारूतजां छर्दि सर्पि: पीतं ससैन्धवम् । किंचिदुष्णं विशेषेण सकासहृदयद्रवाम् ।। व्योशत्रिलवणाढयं वा सिद्धं वा दाडिमाम्बुना। सशुण्ठीदधिधान्येन शृतं तुल्याम्बु वा पयः।। . व्यक्तसैन्धवसर्पिर्वा फलाम्लो वैष्किरो रसः। स्निग्धं च भोजनं शुण्ठीदधिदाडिमसाधितम् ।। कोष्णं सलवणं चात्र हितं स्नेहविरेचनम्। अर्थ : सेन्धा नमक मिलाकर थोड़ा गरम घृतं पीने से वातज छर्दि तथा विशेषकर कास तथा हृदय में घबड़ाहट उत्पन्न करने वाली छर्दि को नष्ट करता है। अथवा व्योष (सोंठ, पीपर, मरिच) तथा त्रिलवण (सेन्धा, सौर्वचल, साभर) मिला हुआ घृत . पूर्ण मात्रा में पीने से वातज छर्दि को नष्ट करता है। अथवा सोंठ, दही तथा धनियाँ मिलाकर पकाया हुआ जल अथवा बराबर जल मिलाकर पकाया हुआ दूध अधिक सेन्धा नमक मिला घृत, अम्ल फंल रस, सोंठ, दही तथा अनार के रस से सिद्ध थोड़ा गरम, सेन्धा नमक मिला हुआ तथा स्निग्ध भोजन हितकर होता है और इस वातज छर्दि में एरण्ड आदि तैल का स्निग्ध विरेचन हितकर है। __पित्तज छर्दि की चिकित्सापित्तजायां विरेकार्थे द्राक्षेक्षुस्वरसैस्त्रिवृत् ।। सर्पिर्वा तैल्वंकं यौजयं वृद्धं च श्लेष्म-धामगम् । ऊर्ध्वमेव हरेत् पित्तं स्वादुतिक्तैर्विशुद्धिमान् ।। . पिबेन्मन्थं यवागू का लाजैः समधुशर्कराम्। .. . मुद्गजाङ्लजैरद्याद्वयज्जनैःशालिषष्टिकम् ।। . मृभृष्टलोष्टप्रभवं सुशीतं सलिलं पिबेत्। . . . 98
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy