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________________ . लगेगी। इससे दोषों की क्षमता नष्ट हो जायेंगी और रसवाही स्रोतसों का मुख खुल जायगा और पसीना निकलने लगेगा जिससे शरीर में हल्कापन, भूख, प्यास, भोजन में रूचि तथा मन में प्रसन्नता होगी। जब दोषों की सामता अधिक होती है तो दोषों का पाचन बहुत विलम्ब से होता है। लघंन यदि अधिक दिनतक किया जाय तो अधिक दुर्बलता हो जाती है। बल के घट जाने से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ नहीं होता है। अतः आहार का प्रयोग करना चाहिए जिससे बल कम न हो।।1-3|| ज्वर में वमन का विधान. - . तत्रोत्कृष्टे समुत्क्लिष्टे कफप्राये चले मले। सहृल्लासप्रसेकाऽन्न-द्वेष-कासविसूचिके।।4।। सद्योभुक्तस्य सज्जाते ज्वरे सामे विशेषतः। वमनं वमनार्हस्य शस्तं कुर्यात्तदन्यथा।।5।। श्वासातिसारसम्मोह-हृद्रोगविषमज्वरान्। अर्थ : ज्वर में दोष उभरे हुए हों या अधिक उभरे हुए हों, कफ बढ़ा हो, दोष चलायमान हो, हुल्लास (उबकाई), मुख से स्राव, अन्न से द्वेष, कास तथा अतिसार वमन होता हो, भोजन करने के बाद तत्काल ज्वर हुआ हो और विशेष कर साम ज्वर हो तब वमन करने योग्य व्यक्ति को वमन कराना प्रशस्त है। यदि इनसे विपरीत अवस्था हो तो वमन कराने से श्वास, अतिसार, सम्मोह, मूर्छा, हृदयरोग तथा विषम ज्वर होता है। [4.511 . वामक योगपिप्लीमिर्युतान् गालान् कल्ड्रैिर्मधुकेन वा116 ।। : उष्णाम्भसा समधुना पिबेत्सलवणेन वा। . पटोलनिम्बकर्कोट-वेत्रपत्रोदकेन वा।।7।। तर्पणेन रसेनेक्षोर्मयैः कल्पोदितानि वा। वमनानि प्रयुज्जीत बलकालविभागवित् 1.18।। अर्थ : वमन के लिए (1) मदन फल का चूर्ण पीपल के चूर्ण के साथ मिलाकर या (2) मदन फल,का चूर्ण इन्द्र जव (कटु इन्द्र जव) के साथ मिलाकर या (8) मुलेठी चूर्ण के साथ मिलाकर मधुके साथ गरम जल से या लवण के साथ गरम जल से पान करे। अथवा (4) पठोल पत्र (5) निम्बपत्र (6) कडुआ 6
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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