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________________ 7 कंण्ठकारी का रस मधु के साथ, (4) वन भण्ठा का रस मधु के साथ, (5) भृंगराज का रस मधु के साथ, (6) कासघ्न ( कसौंदी) का रस मधु के साथ, (7) काली तुलसी का रस मधु के साथ कफकास का रोगी चाटे । वात-कफज का समें देवदार्वादि तीन अवलेहदेवदारुशठीरास्नाकर्कटाख्यादुरालभाः । पिप्ली नागरं मुस्तं पथ्या धात्री सितोपला । । लाजा सितोपला सर्पिः शृगं धात्रीफलोद्भवा । मधुतैलयुता लेहास्त्रयो वातानुगे कफे || अर्थ : वातकफजकास में (1) देवदारू, कचूर, रास्ना, तथा काकड़ासिंधी, (2). पीपर, सोंठ, नागरमोथा, हर्रे, आँवला तथा मिश्री, (3) धान का लावा, मिश्री, घी, काकड़ा सिंधी तथा आँवला समभाग इन आधा श्लोक से समाप्त होने वाले द्रव्यों का चूर्ण, इन तीनों अवलेहों को मधु तथा तैल मिलाकर चाटें । कफज कास में दडिमादि गुटिका द्वे पले दाडिमादष्टौ गुडाद्वयोषात्पलत्रयम् । रोचनं दीपनं स्वर्य पीनसश्वासकासजित् ।। अर्थ : अनार फल के छिलका का चूर्ण दो पल (100 ग्राम) पुराना गुड आठ पल (400 ग्राम), तथा व्योष (सोंठ, पीपर, मरीच चूर्ण) तीन पल (150 ग्राम) इन सबों को एकत्र मिलाकर वटी बनावें, यह रूचिकर, जाठराग्नि दीपक, स्वरं के लिए हितकर पीनस रोग, श्वासरोग तथा कांस को दूर करता है । कफज कास में गुड़क्षारादि गुटिकागुडक्षारोषणकणादाडिमं भवासकासजित् । कमात्पलद्वयार्धाक्षकर्षाक्षार्धपलोन्मितम् ।। दो अर्थ : गुड पल (100 ग्रा.), यव क्षार आधा अक्ष (5 ग्राम), मरिच एक कर्ष (10 ग्राम), पीपर आधा कर्ष (5 ग्राम) तथा अनार का छिलका एक पल (50 ग्राम) इन सबो का चुर्ण गुड़ के साथ मिलाकर वटी बनावे। यह श्वास कास रोग को दूर करता है । कफज कास में पथ्यादि पाचन पिबेज्ज्वरोक्तं पथ्यादि सशृडीकं च पाचनम् । अर्थ : कफज कास में पाचन के लिए ज्वर प्रकरण में कहे गये पथ्यादि पाचन योग मे काकड़ा सिंघी का चूर्ण मिलाकर पान करे । कफज कास में दीप्यकादि पाचन 56
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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