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________________ मृद्वीकार्धशतं त्रिशत्पिप्लीः शर्करा पलम्। . . लेहयेन्धुना गोर्वा क्षीरपस्य शकृद्रसम् ।। अर्थ : दाना रहित मुनक्का पचास नग, तीस बड़ी पीपर का चूर्ण तथा शक्कर एक पल (50 ग्रा) मिलाकर (3 ग्राम की मात्रा में) कास में शहद के साथ चाटें। अथवा दूध पीने वाले गाय (बछवा या बछिया) के गोवर का रस शहद के साथ कास में चाटें। • सभी कास में स्वगादि अवलेह त्वगेलाव्योषमृद्वीकापिप्पलीमूलपौष्करैः । .. लाजमुस्ताशठीरास्नाधात्रीफलबिभीतकैः।। शर्कराक्षौद्रसर्पिमिर्लेहो हृद्रोग-कासहा। अर्थ : दाल चीनी, इलायची, व्योष (सोंठ, पीपर, मरिच) मुनक्का, पिपरामूल, पुष्करमूल, धानका लावा, नागरमोथा, कचूर, रास्ना, आँवला तथा बहेड़ा समभाग इन सबों के चूर्ण का शक्कर, मधु, तथा घृत के साथ अवलेह बनाकर प्रयोग करें। यह हृदयावरोध तथा सभी प्रकार के कास को नष्ट करता है। पित्तज कास में हितकर अन्नमधुरैर्जागलरसैर्यवश्यामाककोद्रवाः।। मुद्गादियूशैः शाकैश्व तिक्तकैमत्रिया हिताः। अर्थ : पित्तज कास में यव, साँवा तथा कोदो का रोटी तथा भात मधुररस .. प्रधान द्रव्य, मूंग आदि का रस, तथा तिक्त रस प्रधान द्रव्यों के शाकं के साथ मात्रा पूर्वक सेवन करने में हितकर होता है। . . धन तथा तनु कफ पित्तज कास में अवलेह आदि घनश्लेष्मणि लेहाश्च तिक्तका मधुसंयुताः।। शालयः स्युस्तनुकफे शष्टिकाश्च रसादिभिः । शर्कराम्भोऽनुपानार्थ द्राक्षेक्षुस्वरसाः पयः ।। अर्थ : गाढ़ा कफ युक्त पित्तज कास में तिक्तरस प्रधान द्रव्यों का मधु-मिश्रित अवलेह हितकर होता है तथा तनु कफ युक्त पित्तज कास में जड़हन धान तथा साठी धान का भात के साथ सेवन करना हितकर होता है। भोजन के बाद शक्कर का शर्बत, मुनक्का तथा गन्ना का रस तथा दूध पीने के लिए प्रयोग करे। . . पित्तज कास में काकोल्यादि रसपेया आदि काकोलीबृहतीमेदाद्वयैः सवृषनागरैः। पित्तकासे रसक्षीरपेयायूषान् प्रकल्पयेत् ।। अर्थ : काकोली, क्षीर-काकोली, भटकटैया, वन भंटा, मेदा, महामेदा, अडूसा . .53
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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