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किया हुआ जल अथवा रोगी की प्रकृति के अनुसार पीने को दे ! विश्लेशण : करैला, परवल आदि व्यंजन (शाक) को पकाकर देना चाहिए किन्तु पकाते समय खाद्य वस्तु तथा मट्टा आदि नहीं मिलाना चाहिए। खाने के बाद गरम किया हुआ जल पिलाना चाहिए ।
ज्वर के रोगी का भोजन काल -- सज्वरं ज्वरमुक्तं वा दिनान्ते भोजयेल्लघु ।
श्लेष्मक्षयविवृद्धोष्मा बलवाननलस्तदा ।। यथोचितेऽथवा काले देशसात्म्यानुरोधतः । प्रागल्पवहिर्मुज्जानो न ह्यजीर्णेन पीडयते ।।
अर्थ : ज्वर के रोगी या ज्वरमुक्त रोगी को दिन के अन्त में हल्का भोजन दे। क्योंकि दिन के अन्त में कफ के क्षय हो जाने से जाठराग्नि की उष्मा बलवान् होती है। अथवा उचित समय पर देश, काल तथा रोगी के प्रकृति के अनुकूल पहले अल्प जठराग्नि वाले व्यक्ति भोजन करने पर अजीर्ण से पीड़ित नहीं होता है । विश्लेषण : ज्वर वाले या ज्वरमुक्त व्यक्ति को पथ्य देने का समय दिन के अन्तिम भाग का विधान है। क्योंकि भोजन के बाद अन्नं की गर्मी से निद्रा आ जाती है और निद्रा आने से ज्वर बढ़ने का भय रहता है । किन्तु यदि रोगी को प्रातः मध्याह्न में ही भूख लग जाय तो उसे देश अर्थात् जिस देश में जिस अन्न की प्रधानता हो अथवा जो अन्न प्रकृति के अनुकूल हो वह पथ्य देना चाहिए। जैसे बंगाल प्रदेश में पुराना चाल, पंजाब में गेहूँ की रोटी तथा साधारण देश में जिस चावल या गेहूँ या जव का अभ्यासी रोगी हो तो उसी समय उसे पथ्य देना चाहिए। यदि न दिया जाय तो शरीर क्षीण, बल की हानि और क्षुधा का नाश हो जाता है।
सर्पिः पानकालमाह
ज्वर में घृत पान कालकषायपानपथ्यान्नैर्दशाह इति लङ्घिते । सर्पिर्दद्यात्कफे मन्दे वातपित्तोत्तरे ज्वरे । ।
पक्वेषु दोषेश्वमृतं तद्विषोपममन्यथा । दशाहे स्यादतीतेऽपि ज्वरोपद्रववृद्धिकृत् । । लङ्घनादिक्रमं तत्र कुर्यादाकफसङ्क्षयात् ।
अर्थ : कषाय पान तथा पथ्य अन्न के सेवन करते हुए दस दिन बीत जाय, कफ मन्द हो तथा वात-पित्त प्रधान हो तो घृत पान कराये। दोषों के परिपक्व
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