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________________ आनूपंष जागलं मांस विधिनाऽप्युपकल्पिताम्। मद्यं सहायमप्राप्य सम्यक् परिणमेत्कथम् ।। . सुतीव्रमारूतव्याधिघातिनो लशुनस्य च। . मद्यमांसवियुक्तस्य प्रयोग: स्यात्कियान् गुणः।। निगूढभाल्याहरणे शस्त्रक्षाराग्निकर्मणि। पीतमद्यो विषहते सुखं वैद्यविकत्थनाम् ।। ... अनलोत्तजेनं रूच्यं शोकश्रमविनोदकम्। . न चाऽत्तः परमस्त्यन्दारोग्यबलपुष्टिकृत्। रक्षता जीवितं तस्मात्पेयमात्मवता सदा। आश्रितोपाश्रितहितं परमं धर्मसाधनम् ।। - अर्थ : विधिपूर्वक बनाया हुआ आनूप मद्य के बिना पिये कैसे पच सकता है? अर्थात् बिना मदृयपान के अच्छी तरह नहीं पच सकता है। भयंकर वात व्याधि का नाश करने वाला लहसुन का मद्य कितना गुण करता है ? अर्थात् लहसुन की गुणात्मकता मद्य की सहायता से होती है। रोगी मद्यपान करने पर ही गहरे शल्य के निकालने, शस्त्रकर्म, क्षारकर्म तथा अग्निकर्म में चिकित्सक द्वारादिये गये कष्ट को सुख पूर्वक सहन कर लेता है। अर्थात् सुखपूर्वक चिकित्सक ने शल्यारण किया यह प्रशंसा मात्र है, दुःख न होने में मद्य पान सहायक है। मद्य जाठराग्नि को बढ़ाने वाला रूचिकारक और शोक तथा श्रम को दूर करने वाला है। इससे बढ़कर दूसरा कोई उत्तम-आरोग्य, बल तथा पुष्टि को करने वाला नहीं है। अतः संयमी पुरूष जीवन की रक्षा करता हुआ मद्यपान करे। यह मद्य आश्रितों तथा उपाश्रितों का हित करने वाला उत्तम धर्म का साधन है। 00000 120
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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