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________________ उदाहरण में लिए नाम चन्द्रकला और जगदीशचन्द्र का वश्य ज्ञात किया तो चन्द्रकला का वश्य 'जलचर' तथा जगदीशचन्द्र का वश्य 'चतुष्पद' ज्ञात हुआ गुण के लिए चक्र में देखा तो 1 गुण मिला। तारा ज्ञान तारा गुण जानने के लिए कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आये तथा वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आये उन दोनों को अलग-अलग 9 पर भाग देना चाहिए, जो अंक शेष बचे उसी की तारा जाननी चाहिए। तारा गुण-बोधक चक्र कन्या की तारा वर की तारा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 3 3 1% 3 1 3 1 3 3 3 3 1 3 1 3 13 3 3 12 120 1 0 1 0 1 1y 3 3 1 3 1 3 1 3 3 12 1720 10 10 11 12 3 3 1 3 1 3 1 3 3 1% 1 0 1 0 1 0 19 1% 3 3 1 3 1 3 1 3 3 3 3 1 3 1 3 1 3 3 पूर्व में जो दो नाम लिए थे चन्द्रकला और जगदीशचन्द्र उनमें चन्द्रकला का नक्षत्र रेवती और जगदीशचन्द्र का उत्तराषाढ़ा था। नियमानुसार कन्या के नक्षत्र रेवती से वर के नक्षत्र उत्तराषाढ़ा तक गिना तो संख्या 22 मिली। इसे 9 से भाग दिया तो 4 बाकी बचे जो कन्या तारा हुई। उत्तराषाढ़ा से रेवती तक गिना तो संख्या 7 मिली। यह 9 पर विभक्त नहीं हो सकती, अतः वर की 7 तारा हुई। चक्र में गुण मिलान किया तो सात के नीचे 1/2 गुण मिला। 149
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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