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किसी का मत है कि ब्राह्मण के लिए नाड़ी और ग्रह मैत्री, क्षत्रिय के लिए वर्ण तथा गण, वैश्य के लिए तार तथा भकूट एवं शूद्र के लिए नृ दूर वर्ण का हो, विचार करना आवश्यक है।
अष्टविध मेलापक विचार
ज्योतिष सूचना शास्त्र है। किसी भी कार्य से पूर्व ज्योतिषीय सलाह लेना आर्ष परम्परा है। विवाह से पूर्व भी दाम्पत्य जीवन के बारे में जानकारी लेने की परिपाटी चली आ रही है। इसे 'मेलापक' या कुण्डली मिलान' कहा जाता है। मेलापक मात्र परम्परा का निर्वाह करने के लिए नहीं किया जाता अपितु भावी सहचर-सहचारी के स्वभाव, आचार-विचार, गुण-दोष, और उनके भावी जीवन के बारे में सूचिक करने के लिए किया जाता है। विश्व की प्रत्येक जाति एवं धर्म में विवाह करने की प्रथा है। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार विवाह के रीति-रिवाजों में भिन्नता होना स्वाभाविक है। पश्चिम में विवाह के पूर्व डेटिंग (मिलन) अनिवार्य शर्त है। इसके पश्चात् ही प्रणय सूत्र में बंधने की स्थिति आती है। वही की कन्यायें विवाहयोग्य होने पर स्वयं ही पति का वरण कर लेती हैं। विवाह उनके लिए एक सामाजिक समझाौता है। जब तक मन लगा, तब तक साथ-साथ रहे, जब ऊब गये तो सम्बन्ध विच्छेद कर लिया अर्थात् तलाक ले लिया, परन्तु भारत में विवाह एक पवित्र संस्कार और जीवन भर का सम्बन्ध माना जाता हैं यहां नारी मात्र भोग्या नहीं, गृहलक्ष्मी और घर-परिवार की प्रतिष्ठा मानी जाती है। भारत में भी पश्चिम की नकल करने वाले कुछ लोग प्रेम-विवाह करते ही हैं। भारत के पास वह ज्ञान है जिसके द्वारा भावी जीवन साथी की सम्पूर्ण जानकारी-कर्म, गुण, स्वाभाव आदि- के साथ-साथ उसके संयोग से उत्पन्न होने वाली स्थितियों तथा प्रभावों का भी सही मूल्यांकन किया जा सकता है। ज्योतिष की यह मान्यता है कि भावी पति-पत्नी के ग्रहों में एक सीमा तक समानता होने पर ही विवाह सफल सिद्ध होता तथा यही समता विवाह के वास्तविक सुख की सूचक रहती है। अनुकूल ग्रह-योग में किया गया विवाह जहां सुख और समृद्धिदायक होता है, वहीं बिना ग्रह-योगों के मिले या परिस्थितिवश किया गया प्रणन-सम्बन्ध हानिप्रद रहता है। आगे भावी पति-पत्नी
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