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हो तो क्या वहीं फल देगा? दैवज्ञ श्री काटवे, महाराष्ट्र के उत्तम ज्योतिषी रहे हैं, उनका कहना है कि शनि की साढ़े साती उस समय आरम्भ होती है जब शनि चन्द्रमा से 45° पीछे होता है तथा तब तक रहती है जब वह 45° आगे रहता है। इस प्रकार जन्म चन्द्रमा के अंशो में से 45° घटाओ तथा 45° जोड़ो। इससे प्राप्त होने वाली चाप पर जब तक शनि रहता है शनि की साढ़े सती रहती हैं। इस प्रकार ग्रह का राशि परिवर्तन समय कोई महत्व नहीं रखता। इस प्रकार मूर्ति निर्णय पद्धति महत्वहीन हो जाती है। 6. शनि वाहन विचार कुछ विद्वान् शनि की साढ़े साती के शुभाशुभ का विचार शनि के राशि प्रवेश समय से वाहन निकाल कर भी करते है। जिस दिन शनि राशि में प्रवेश करता है उस दिन की तिथि + वार+ नक्षत्र + जन्म नक्षत्र को जोड़कर 9 से भाग देते हैं जो शेष बचे उससे वाहन निकालते है। यदि शेष
फल
1 हो तो वाहन खर हानि 2 हो तो अश्व (घोड़ा) जय
हो तो गज (हाथी) सुख 4 हो तो महिष (भैंसा) मध्यम 5 हो तो सिंह
शत्रुनाश 6 हो तो जम्बुक (स्यार) शोक 7 हो तो काक
कलह 8 हो तो मोर (मयूर) 9 हो तो हंस
सुख अन्य मत से 4 महिष का फल लाभजनक बताया गया है। अन्य मत से ग्रह जिस नक्षत्र पर राशि परिवर्तन, जन्म नक्षत्र से उस नक्षत्र तक गिन कर 9' से भाग दे। जो शेष बचे उससे वाहन निकाले। इस प्रकार कई अन्य मत भी प्रचलित है जिससे गोचर के ग्रह का शुभाशुभ फल निकलाते हैं। परन्तु लग्न, सप्तशलाखा, तारा तथा अष्टक वर्ग से ग्रह को
लाभ
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