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5. पंचम भाव में केतु हो तो जातक वातरोगी, कुचाली, कुबुद्धि, सन्तान को नष्ट करता है, योगी, कुशाग्रबुद्धि एवं क्रोधी होता है। 6. षष्ठभाव में केतु हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालू, अरिष्टनिवारक, सुखी, मितव्ययी, भूत प्रेतजनित रोगों से रोगी, दुर्घटना, दीर्घायु एवं धनी होता है। 7. सप्तम भाव में केतु हो तो जातक मतिमन्द, मूर्ख, दुखद विवाहित जीवन, पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद, शत्रुभीरु एवं सुखहीन होता है। 8. अष्टम भाव में केतु हो तो जातक दुर्बुद्धि, स्त्रीद्वेषी, चालाक, दुष्टजनसेवी, तेजहीन, नीच, स्त्री की कुण्डली में पति के लिए अशुभ एवं अल्पायु होता है। 9. नवम भाव में केतु हो तो जातक सुखाभिलाषी, व्यर्थपरिश्रमी अपयशी, दुःखी एवं 48 वर्ष के बाद भाग्योदय होता है। 10. दशम भाव में केतु हो तो जातक अभिमानी व्यर्थ, परिश्रमशील मूर्ख, पितृद्वेषी, दुर्भागी, संन्यास लेना एवं योगी होता है। 11. ग्यारहवें भाव में केतु हो तो जातक बुद्धिहीन, निजका हानिकर्ता, अरिष्टनाशक एवं वातरोगी होता है। 12. बारहवें भाव में केतु हो तो जातक चंचल बुद्धि, धूर्त, ठग तांत्रिक, अतव्ययी निर्बल स्वास्थ्य, पागलपन, मोक्ष प्राप्ति, अविश्वासी एवं जनता को भूत-प्रेतों की जानकारी द्वारा ठगने वाला होता है।
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