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________________ उत्तगध्ययनसो ऽन्याऽपि पनि समवेदत आह-'भरा' इत्यादि-स हि पाच नीति देवेन्द्रादि निहतानि चन्दन नमस्कारणादीनि य. ग नया, तीर्थहित्यर्थ., अतएर-लोकमित =लाफजयसेरिन , सयुद्धामा सयुद्धाताधारपान आत्मा यम्य स तथा, तत्चनानाथ आसीत् , पर विधनास्थोऽपि स्यात् , अत आह-'सधण' इत्यादि-स पार्थप्रभु सजि.सबलगमागेरसम्पज्ञान सम्पन्नः, तथा-धर्मतीर्थकर धर्म पर भान्धितरण हेतुत्वातीर्थ--धर्मतीर्थ तस्य करकारका प्रवर्तक इति यारत , तथा-स जिन सलमजेता चासित् । अय द्वितीयो जिन शब्दो मुक्त्यास्थाऽपेक्षया प्रोक्त. ॥१॥ अन पसङ्गमाप्त श्रीमानायमभुचरित भन्यजनपरिनानाय सक्षेपतो लिग्यते (प्रथमो मरुभूति भव:) आसीदत्रैव भरतक्षेत्रे सालरिया कागृह पोतन नामक पत्तनम् । तत्रा ___ अन्वया-(निणे-जिन.) राग के विजेता (पासेत्ति नामेणपाच इति नाम्ना) पार्श्वनाथ इस नाम से प्रसिद्ध (जिणे-जिन ) जिन भगवान् थे । ये (आहा-अहन्) तीर्थकर पद धारक थे। (लोगपूड" लोकत्रयपूजित.) तीन लोक द्वारा पूजित थे। (सनुदप्पा-सवुद्वात्मा) स्वय वुद्ध थे। (सन्वण-मर्वजः) सफल निशालवर्ती पढामों को एक साथ जानते थे। तया (धम्मतित्ययरो-धर्मतीयकर') भवाब्धि स तरण का हेतु होने से धर्मरूप तीर्थ के प्रार्तक थे। इन पाश्वनाथ प्रभु के दस भवों में से प्रथमभव मरुभूति का इस प्रकार है इसी भरतक्षेत्र में सकल शोभा का धाम तथा लक्ष्मीरूपी ललना का ललाम कलागृह एक पोतनपुर नामका पत्तन था। यहा मन्याथ-जिणे-जिनः शाप 64२ विनय पास ४२नार पासेत्ति नामेणपाचे इति नाम्ग पवनायसनामथी प्रसिद्ध जिणे-जिन न वान हता तया अरहा-बहन् ती ४२ पाना चा४ &al लोग पूइए-लोकत्रयपूजित था लत! Sal, सबुद्धप्पा-सबुद्धात्मा २वय सुद्धता सधणा सचण्णू -सर्वज्ञः nिtशी पहायान साथै शुनार ता तथा धम्पतित्थयरोधमतीर्थकर सवाधिथी तरवाना हेतु डावाची भ३५ तीन अवत: al એ પાર્શ્વનાથ પ્રભુના દસ માથી પ્રથમ ભવ મરૂભૂતિને વૃત્તાત આ પ્રકારને છે આ ભરતક્ષેત્રમાં સઘળી શોભાના ધામ તથા લક્ષમીરૂપી લલનાના લલામ કલાગ્રહ એક પિતનપુર નામનું ગામ હતું ત્યાં અરવિદ નામના રાજા રાજય કરતા
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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