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________________ प्रियदर्शिनी टोफा अ २२ नेमिनायचरितनिरूपणम् ७re कान्या युप्ताक विवाहमाये बह जन-समागतान् बहन यादवान् माजयितु सन्निरुदा मन्ति । 'तो' इत्यत्र माविभक्तिकम्नगि ।'' गटर प्ररणे १७॥ इत्य मारथिनोक्ते -प्रभुबके तदाह-- मृम्सोऊण तस्त वयणं, बहुपाणिविणासण। चिंते. से महार्पन्ने, साकोसे जिएंहि ऊ ॥१८॥ छाया-श्रुत्वा तम्य वचन, बहुमाणिविनाशनम् । चिन्तयति स महापाता. सानुकोगो जीवेषु तु ॥१॥ टीका-'सोऊण' इत्यादि। तस्य-स्तिपस्य बहुमाणिविनाशन-पहुप्राणिविनाशमूचक वचन अत्ता जीवेपु-मागिपु सानुकोशो-दयावान् महाप्रानो मत्यादिनानत्रयसहित स भग वानरिष्टनेमिः, तु-निश्चयेन चिन्तयति ॥१८॥ पाणिणो-गते भद्राः प्राणिन) ये क्रूर स्वभाव से रहित होने के कारण भोले प्राणी-मृग तित्तिर लावक आदि जानवर हे इनको मारकर (तुझे विवाह कन्नम्मि बहु जण भुजावेउ-युष्मारुविवाहकार्ये घटजन भोजयितुम् । आपके इम विवाह कार्य में आये हुए बहुत यादवी को जो कि मामा हारी है उनको खिलाने के लिये बंद किये गये है ॥१७॥ इस प्रकार सारथि के वचन मुनकर भगवानने क्या किया सो कहते हैं-'सोऊण' इत्यादि। ___ अन्वयार्थ-(तस्स बटुपाणिविणासण वयण सोऊण-तस्य पदुमा णिविनाशन वचन श्रुत्वा) इस प्रकार अनेक प्राणियों के विनाश सूचक सारथि के वचन सुनकर (जिएहिं साणुकोसे-जीवेपु सानुक्रोशः) समस्त प्राणियों में अनुकम्पा के भाव रखने वाले तथा (महापन्ने-महापाज्ञः રહિત હોવાના કારણે ભેળા પ્રાણી મૃગ, તિત્તિર લાવક, વગેરે જાનવર છે તેમને મારીને तुम्मे विवाहकजमि-युप्माक विवाहकायें साधना मा विवाह आय भी मापेक्षा वह जण मुजावेउ-बहुजन भोजयितुम् पक्षा यावा , २ भासाहारी तमन ખવરાવવાને માટે બંધ કરવામાં આવેલ છે આપણા આ પ્રમાણે સારથિનુ વચન સાંભળીને ભગવાને જે કહ્યું તે કહે છે -- "सोऊण" त्यात मन्वयार्थ:--तस्स बहुपाणिविणासण वयम सोऊण-तस्य वहभाणिविनाशन वचन श्रुत्वा मारना मने प्राणीयाना विनाश सूयह सेवा साविना पयन सामगीन जिएहि साणुकोसो-जीवेषु सानुक्रोश' मा प्रादायामा अनु
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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