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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० नेमिनायचरिननिरूपणम टीका 'अहाह' इत्यादि अथ धासुदेवकृतराजीमतीयाचनानन्तर नम्या' बाजीमत्या जनक = पिता उग्रसेनो मरम्भिरताऋद्विगुक्त वासुदेव कृष्णम् एवमाह-हे पास देव । कुमार =अरिष्टनेमि इह-मम भवने आगरा, यतनामैसुमाराया कन्या दहामि-विवाहविधिना समर्पयामि ॥८॥ इत्य विवाहस्वीकृती सत्या नोटिपिनैमित्तिकादिष्टविवाहलग्ने प्रन्यासाने यदभूतदुच्यते 'अहाह' इत्यादि। अन्वयार्थ-(अह-अय) चामुदेवने जब राजीनती की याचना परी नर उसके बाद (तीसे जणओ-तस्या. जनकः) राजीमती के पिताने (महड्रिय चासुदेव-महर्द्धिक वासुदेवम्) आधे भरत खड की सद्धि से सपन्न वासुदेव से (आह-आर) ऐसा रहा-(कुमारो इहागन्छ उ-कुमार इह आगच्छतु) हे वास्तुदेव ! अरिष्टनेमिकुमार यहा मेरे घर पधारे (जा-यतः) क्यों कि (से ह कुण्ण दलामि-तस्मै अह मन्या ददामि) उनके लिये मुझे कन्या देना है। भावार्थ-कृष्ण का वचन मुनकर हर्पिन हुए उनसेनने उनसे कहावासुदेवजी-हमे आपका विचार स्वीकृत । श्राप कुमार को यहा ही भेट दीजिये । मैं उनके साथ विधिपूर्वक अपनी कन्या का विवाह कर दगां ॥८॥ __ इस प्रकार उग्रसेन द्वारा कहे जाने पर कृष्णने कोष्टुकि नमत्तिा दारा विवाह लग्न का सशोधन करवाया। विवाह का समय जर नजदीक "अहाइ" त्या ! मन्पयार्थ:--अह-अथ पासुहेव न्यारे रामती यायना ४श त्या वीसे जणी-तस्या जनकः २७ मताना पिताये महडिय वासुदेव-महर्द्धिक वासुदेवम् मया सरतम उनी ऋद्धिाणा सेवा पासुनने आह-आह ड्यु, कुमारी दहागन्उउ-कुमार इहागत ३ वासुदेव ! मा नेभिभा२ गडी मारे ३२ ५॥३ કેમકે, મારે તેમને કન્યા આપી છે ભાવાર્થ--તૃષ્ણનું વચન સાંભળીને હર્ષિત બનેલા ઉગ્રસેન રાજાએ શ્રી કુષને કહયુ -વાસુદેવજી ! અમને તમારો વિચાર સ્વીકાર્ય છે આપ કુમારને અહી મેડલી દે છે તેની સાથે મારી કન્યાને વિધિપૂર્વક વિવાહ કરી દઈશ | આ પ્રમાણે ઉગ્રસેન તરફથી સ્વીકાર કરાતા કૃણે કે ટુકી નામના તિથી પાસે વિવાહ લગ્નનું મુહૂર્ત જેવડાવ્યું વિવાહને સમય જ્યારે નજીક આવ્યા
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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