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________________ ६३८ टीका--'तस्' इत्यादि । पिता=पालितः तस्य समुद्रपारस्य कृते पिण=रिणीत्यभियान= सुन्दरी भार्याम् आनयति=आनीतवान । पारित सर्वासुन्दरी रूपिणीत्यभिया कन्या समुद्रपालितेन हि कारितवान इति भावः । स समुद्रपाल दोगु देव यथा=दोगुन्दा रम्ये मासादे तया सह नीति शन्द्रादिकाम भोगान् उपभुक्ते इत्यर्थः । ||७|| मूलम् - अहे अन्नंया याइ, पासायालोयणे टिओ । वज्झमडंणसोभाग, बज्झ पास वज्झगं ॥८॥ छाया -- अथ अपना कदाचित् मासाहारोकने स्थितः । वयमण्डनशोभा य पश्यति यगम् ॥८॥ 13 उत्तराध्ययन सूत्रे टीका--'अह' इत्यादि । अथ=अनन्तरम् अन्यदा कदाचित् प्रासादालोकने= मासादगवाक्षे स्थित ' 'तम्स रूपः' इत्यादि । अन्वयार्थ - ( पिया - पिता) पिता पालितने (तस्स - तस्य) समुद्रपाल का ( विणि-रूपिणिम्) रूपिणी इस नाम की (रुववड - स्पवनीम् ) अनुपम सुन्दर रूपवाली कन्या के साथ (आणेइ - आनयति) विवाह कर दिया। (रम्मे पामाए - रम्ये प्रासादे ) समुद्रपाल अपनी भार्या के सा अपने सुरम्य महल मे ( दोगुदगो जहा - दौगुन्दक. यथा) दौगुन्दक देव की तरह (कील - क्रीडति ) शब्दादिक कामभोगो को भोगने लगा ॥७॥ 'अह अन्नया' इत्यादि । अन्वयार्थ (अह - अथ) एक दीन की बात है कि (अन्नया कया“aq Gaaz” Scule अन्वयार्थ–समुद्रयास उभर साय थता तेना पिया - पिता पिता पालित श्री तस्स - तस्य तेनु रूविणी - रूपिणीम् ३चि॥ नामनी ववइ - रूपमतीम् अनु थम सुह२ ३चवाणी उन्यानी साथै आणे - आनयति न उरी हीधु रम्मे पासाए - रम्ये प्रासादे समुद्रपाण पोतानी खीनी साथै पोताना सुरभ्य भसभा दोगुन्दको जहा - दोगुन्दक यथा हौशुन्६४ हेवनी भाइ कीलए-क्रीडति शब्दाहि भ ભાગાને ભાગવવા લાગ્યા નાણા "अह अन्नया" धत्यादि अन्वयार्थ ---अह-अथ येऊ हिवसनी बात छे अन्नयाकया - अयदा कदाचित् 1 t
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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