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________________ ६३४ उत्तराध्ययन सूत्रे विरत आसीत् । तु= पुनः स महात्मन' = मशस्तात्मा भगवतो महारस्य शिष्य आसीत् । भगवन्त्यतात्म्य तेन प्रतिबोधितत्यान ||१|| मूलम् - - निग्गथे पार्वयणे, सांवए से विकोविए । पोषण ववहरते, पिंड नगरमार्गे ॥२॥ छाया--नैग्रन्थे माचने । 1 पोतेन व्याहरन् पिण्ड नगरमागतः | २|| टीका- 'निगथे' इत्यादि । नेग्रन्थे= निर्ग्रन्यसम्वन्धिनि पचने विशिष्ट कोविदः=विदित जीवादिपदार्थः स पालितो नाम - श्रावक पोतेन = महणेन व्याहरन= व्यापार कुर्वन् पिण्ड नाम नगरम् आगतः ||२|| मूलम् -- पिंडे बहरतस्त, वाणिओ देह धूयर । 'तं सन्तं पइगिज्झ, सदेसमहं पर्थिओ ||३|| आसि- वणिज, श्रावक, आसीत् ) वणिक श्रावक था (सो-स.) वह (महप्पणी - महात्मन) महात्मा (भगवओ - भगवतः) भगवान (महावीरस्स - महावीरस्य) महावीर प्रभुका (सीसे - शिष्यः) शिष्य था ॥१॥ 'निग्गथे' इत्यादि । अन्वयार्थ -- (निग्गथे पावयणे - नैर्ग्रन्थे प्रवचने) निर्ग्रन्थ मबधी प्रवचन मे (विको विए-विकोविद ) विशिष्ट - विद्वान (से साव-स आवक ) वह श्रावक (पोषण यवहरते-पोतेन व्यवहरन् ) जहाज से व्यापार करता हुआ (पिटुड नगरमागर - पिटुण्डम नगरम् आगत ) पिटुण्ड नामके नगर मे आया ||२|| पालित नाम पासित ये नागनी मे वागिए सावए आसि-वाणिजः श्रावक. आसीत् वणि श्राव ता सो महप्पणी - स. महात्मा मे महात्मा भगवओ - भगवत भगवान महावीरना सीसे-शिष्य शिष्य हता ॥ “निग्गथे" धत्याहि अन्वयार्थ - निगथे पावणे - नैग्रये प्रवचने निग्रन्थ समधी अथनभा विकोविए - विकोविद विशिष्ट विद्वान से सावऐ- स श्रावक से श्राप पोएण ववहरतो - पोतेन व्यहरन् यी व्यापार ४२४२॥ पिहुड नगरमा गए- पिहूण्डम् नगरम् आगत. थिहुए। नाभना नगरभा पहोच्या ॥२॥
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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