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________________ प्रियदर्शिनो टोका व. २० मानिनन्यम्बर पनिरपणम् मम्-तुट्रो' य सेणिओ राया. इणमाई कयजली। अणाहत्त जहाझ्य, सुंछ मेउवदसिय ॥५॥ जयाप्टश्च येणिका राजा, इदमाह कृताञ्जलि.। अनाथत्व यथाभूत, सुई मे उपगितम् ॥५४॥ टीका--'तो' इत्यादि। महामुने चन अत्वा तुष्टः श्रेणिको राजा कृताञ्जलि मन उदय माणम् आह-उक्तवान् यदुक्तवास्तदुच्यते-'अणारत्त' इत्यादिना। हे महामुने! भवता यथाभूत वास्तविकम् अनाथत्व मे=मम रहु-सम्यकप्रकारेण उपदर्शित मोक्तम् च शब्द पूरणे ॥५४॥ कि च-- मूलम् - तुंभ सुलंड खु मणुसंजम्म, लाभा सुलद्धा यं तुंम्भे महेसी। तुभेसगाहा सवधैवा थे, जे भे"ठियामग्गिं जिणुत्तमाणं ॥५५॥ छाया -युग्माभि मूलय बलुमनु पजन्म, लामा सुरुषाश्च युजाभिम। - य मनाथाच, मान्यवाञ्च, यद्यूय स्थिता मागे जिनोत्त मानाम् ॥५५॥ । उसके पाद-'तुट्टो य' इत्यादि । - अन्वयार्थ इस प्रकार अनाथिमुनिराज द्वारा अनाथपद की व्यारया सुनकर (तुट्टो-तुष्ट) प्रसन्न एव सतुष्ट हुए (सेणिओ राया-श्रेणिक राजा) श्रेणिक राना ने (कयजलो-फुलाञ्जलि.) हाय जोडकर उन अनायो मुनि से (णमाद्-इदमाह) इस प्रकार कहा कि-आपने (मे) मुझे (जहाभूय अणाहन-चयामृत अनायत्वम्) वास्तविक अनायपना (सुट्ठ-सुष्टु) अच्छी तरह से (उवदसिय-उपदर्शितम्) खुलाशा करके समाया है ॥५४॥ त्यारा--"तोय" त्यादि અન્વયાર્થ—–આ પ્રકારે અનાથ મુનિરાજ દ્વારા અનાથપદની વ્યાખ્યાને સાભ पान तटो-तप प्रसन। मने सतुष्ट नेता या सेणिओ राया-श्रेणिक. राजा ये श्रेणि मे कयजली-कृताञ्जलि डायलेसन मनाथ भुनिने इणमाहइदमाह मा प्राथी छु, साये मे-मे भने जहाभूय अणाहत्त-यथाभत अनाथत्वम् वास्तविर मनापार सुट्ट-सुष्टु सारी रीत उपसिय-उपदर्शितम् ખુલા કરીને સમજાવેલ છે ૫૪ - --- - -
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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