SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३ प्रियदर्शिनी टीश अ १ गा ९ भिगुणप्रतिपादनम् मुव्यत्ययात् आतुरम्य रोगपीडितम्य सासारिकम्यजनाटे म्मरणम् हा मातः ! हा पित ! मद्विना तय कीटगी दशा भरिप्यतीत्यादिरूपम् , तथा-चिकित्सितस्वपररागमतीमार च परिनायज्ञ परिनयाऽनर्थमूल परिज्ञाय पत्याग्यानपरिज्ञया च परित्यज्य य परिनत सयममार्गे हिरेत् स भिसुरुच्यते ॥८॥ तपा -- मृलम्-खलिय-गण-उग्ग-रायपुत्ता, माहण भोडेय विविहाय सिप्पिणो। नों ते सि वयड सिलोगपूय,'त परिन्नाय परिव्यए से भिक्ख ॥९॥ डाया--त्रियगगोग्राना, ब्राह्मणा भोगिका विविधाश्च शिल्पिनः । नो तेपा बदति श्लोकपूज, तत्परिनाय परिनजेत्स भिक्षु ॥९॥ टीमा--'पत्तिर' इत्यादि । क्षत्रियगणोपरानपुना.-तत्र-निय प्रसिद्धा., गणाः मल्लादि समूहा', उग्रा -उग्रवशीयाः रोहपालगढयो पा. राजपुत्राःनृपमता , एपामितरेतरयोगस्ते, तया-बामणा., भोगिका.-रिशिष्टनेपश्यन्तोराजमान्या अमात्यादयः, तथाअवस्था मे सधियों के स्मरण करने की तथा (तिगिछिय-विकिसितम् ) स्व और पर के रोग के प्रतिकार का (परिन्नाय-परिज्ञाय) ज परिना से उनको अनर्थ का मूल जानकर व प्रत्याख्यान परिज्ञा से परित्याग कर (जो परिमा-य परिव्रजेत् ) जो सयममार्ग में विचरता है (म भिख्खू-स भिक्षु) वह भिक्षुहै ॥८॥ तया-ग्वत्तियगण' इत्यादि । अन्वयार्थ--(वित्तिय-गण-उग्ग-रायपुत्ता. क्षत्रियगणोपराजपुत्राः) क्षत्रियपगोड़व व्यक्तियो की, विशिष्ट शक्तिशाली पहिलवानो की, उग्र वा में उत्पन्न हुए मनुष्यो की, एव राजपुत्रो की (माण-ब्राह्मणाः) तिगिन्छियम चिकित्सितम् पाताना भने भागना शेगाने प्रति परिन्नाय परिज्ञाय પરિણાથી એ બધાને અનર્થનુ મૂળ જાને અને પ્રત્યાયાન પરિજ્ઞાથી પરિત્યાગ કરી जो परिव्यए-य परिनजेत् २ सयभ भाभा वियरे छ, स भिक्खू-स भिक्षु ते ભિવ્યું છે કે तथा-"वत्तियगण." या ! मन्वयार्थ --- खत्तिय-गण-उग्ग-रायपुत्ता-क्षत्रिय-गणोग्रराजपुत्रा क्षत्रिय વશમા જન્મેલી વ્યક્તિઓની વિશિષ્ટ શક્તિશાળી પહેલવાનની ઉગ્ર વશમા त्पन्न थयेट मनुष्योनी, मने पुरुषानी तथा मारण-ब्राह्मणः प्राय नानी
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy