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________________ ७२ प्रियदर्शिनी टीका ब २० महानिर्ग्रन्यस्वम्पनिम्पणम् ___ साम्मत भार्यामाश्रित्य तिमभिर्गायाभिरनायतामाह--- मृगम्-भारियों से महारोय ' अणुरंता अणुव्वया । असुपुण्णेहि नयंणेहि, उर मे परिसिंचड ॥२८॥ अन्न पाण च होण च गधमहविलेवणं । मए णायमणीयं वो, सो बाला नोभुजह ॥२९॥ खंणं पि में महाराय ', पासओ वि ने फिड । ने यं दुक्खा विमोएंड, एसे मझें अनाया ॥३०॥ छाया- भार्ग में महारान !, अनुरक्ता अनुनता। अश्रुपूर्णर्ने यने , उरो मे परिपिञ्चति ॥२८ । अन्न पान च स्नान च, गन्धमाल्यविलेपनम् । मया-ज्ञानमज्ञात घा, सा पाला नोपमुक्त ।।२९।। क्षणमपि मे महाराज! पाचतोऽपि न भ्रशते । न च दुपाद् विमाचयति, एपा मम अनायता ॥३०॥ टीश-'भारिया' इत्यादि। हे महाराज ! अनुरक्ताअनुरागवती, अनुव्रता पतित्रता, मेम्मम भार्या ऽपि ययुपूर्णै. नयनै मे=मम उरः परिपिञ्चति स्म ॥२८॥ न य विमोयति-दुरवात न विमोचयति) दुग्व से नहीं बचा सकी। (एसा मज्झ अणाया-आपा मे अनायता) यह मेरी अनायता है ॥२७॥ भारिया मे' इत्यादि । अन्वयार्थ-(महाराय-महाराज) हे राजन् ! जो (मे-मे) मेरी (भारियाभार्या) भार्या थी कि जो मुझ म (अणुरत्ता-अनुरक्ता) विशेष अनुरक्त एव (अणुचया-अनुव्रता) पतिताथी यह (असुपुण्णेहिं नयणेहिं-अश्रुपूर्णे. नयन.) अश्रुपूर्ण नयनो से मेरे वक्ष' स्थल को सीचती थी ॥२८॥ मथी छाडावी शस नती एसा मज्झ अणाहया-एपा मम अनाथता આ મારી અનાથતા છે કે ર૭ છે "भारिया मे" त्यादि _म-क्या-महाराय-महाराज हे शन् । २ मे-मे भारी भारिया-भार्या श्री ती भाराभा अनुरत्ता-अनुरक्ता भूमन मनु२४त भने अणुव्यया-अप्रता पतिनता ती ते अमुपुण्णेहि नयणेहि-अश्रुपूर्ण नयन मश्रुपू नयनाथी भा। વિક્ષ સ્થળને ભિજવતી હતી ! ૨૮
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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