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________________ - - उमगध्ययनसो ऽपि च, आभ्यन्तरिक तपो भाति ॥१॥ अनशनमूनोदरिता, मृत्तिसक्षेपण रसत्यागः। कायक्लश सल्लीनता च या तपो गति ॥२॥ इति ॥८८॥ तथा च-- मूलम्--निम्ममो निरहंकारो, निस्सगो चत्तगारयो। समो ये सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥८९॥ छाया-निर्ममो निरहवारो, निःसहस्त्यक्तगौरवः । समश्च सनभूतेपु, उसेपु स्थारेषु च ।।८९|| टीका 'निम्ममो' इत्यादि स मृगापुत्रो मुनिः निर्मम जलपानादिपु ममत्वरहित' निरहङ्कार' अह कार रहित', नि सङ्गामाह्याभ्यन्तरमहरहितः, त्यक्तगौरव ऋद्धिगौरव रस गौरव सातगौरवेति गौरवयरहित , च-पुन उसेपु स्थापरेषु च सर्वभूतेषु-त्रस स्थावरात्मक-सकलभूतेषु सम =गद्वपाभावात्तुल्योऽभूत् ॥८९॥ ३ तीनगुप्तियां हैं। प्रायश्चित्त विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान व्युत्सर्ग ये छह प्रकार के आभ्यन्तरतप हैं। अनशन, ऊनोदर वृत्ति सक्षेपण, रसपरित्याग, कायक्लेश, सल्लीनता, ये छह बाह्यतप हैं |८|| - फिर कैसे बने सो कहते हैं-'निम्ममो' इत्यादि। अन्वयार्थ- तप करते २ मृगा पुत्र की परिणति इतनी निर्मल बन गई कि वे (निम्ममो-निर्ममो) वस्त्रपात्र आदि में भी ममत्व रहित शे गये। (निरहकारो-निरहङ्कारो) अहकारभाव आत्मा से बिलकुल चला गया। बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह के त्याग से (निस्सगो-नि सङ्ग) उनमे नि सगता आगई। इनकी परिणति (चत्तगारवो-त्यक्तगौरव ) ऋद्विगौरव, रसगौरव, सातगौरव से रहित हो गई। (तसेसु थावरेतु य सम्वभूएसु વૈયાવૃત્ય, સ્વાધ્યાય, ધ્યાન અને વ્યુત્સગ એ છ પ્રકારના અભ્યતર તપ છે અનશન, ઉદરીવૃત્તિ સક્ષેપણુ રસ પરિત્યાગ, કાયાકલેશ, સલીનતા આ છ બાહ્ય તપ છે ૮૮ पछी ३१ मन्या छ-निम्ममो" इत्यादि । અન્વયાર્થ—–તપ કરતા કરતા મૃગાપુત્રની પરિણતી એટલી નિર્મળ બની ગઈ કે, निम्ममो-निममो पत्र, पात्र माहिमा पछु भने भमत्व न रघु निरहकारीनिरहङ्कारो म २ मा मात्मामाया भीage यायो गयो माघ मन भल्या तर परिखना त्यागयी सभामा निस्सगो-नि सह निसगत मावी मना परिश्ता चत्त गारवो-त्यक्तगौरव रिद्धि गौ२५, २८ गी२५, सात गौरवथी रहित मनी
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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