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माध्ययनसने
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दुप्फर भाति । अग्निनिवापानरत् तारुण्ये चारित्रपरिपारन पर दपरमिति भारः । 'जे' गलः पूरणे ॥३९॥
किंचमूलम्--जही दुक्स भरे जे, होई वायस्सं कुत्यलो।
तही दुख करेउ जे, कीवेणं समणतणं ॥४०॥ छाया-यथा दुख भर्नु यद्, भाति पातेन कुत्थलः ।
तथा दु.। फर्नु यत्, सीन श्रमणत्वम् !५०|| टीका-'जहा' इत्यादि।
हे पुत्र ! यथा कुत्ययस्वादिमय 'कोयला' इति प्रसिद्धो वातेन पायुना भई दुःख-दुःशरम् असाध्य भाति । तथा-सीनपातरेण-निःसत्त्वेन -तारुण्य) यौवन में (समणत्तण करे। दुक्कर-अमणत्व कदुपरम) चारित्र का पालन भी बहुत ही कठिन है।
भावार्थ-चाहे जितना भी समझदार एव शक्तिशाली मनुष्य क्या न हो वह दीप्त अग्निशिसा का पान नहीं कर सकता है। इसी तरह पुत्र' जवानी अवस्था में भी चारित्र निर्दोप पालन नहीं थे सक्ता है। अत इस चारित्र पालन के बखेडे छोडो इसी मे मलाई है ॥३०॥
फिर भी__ 'जहादुक्ख' इत्यादि।
अन्वयार्थ हे पुत्र ! (जहा-यथा) जैसे (कुत्यलो-कुत्यल) का थला को (वायरस भरेउ दुक्ख-घातेन भर्नु दु ग्वम्) बायु से भरना असाध्य है-अशक्य है (तहा-तया) उसी तरह (कीवेण समणत्तण करेउ दुक्ख-क्लीवेन श्रमणत्व कर्तु दुःखम् ) कायर मनुष्य द्वारा चारित्र पालन सत्यत ६०५२ छ तह-तथा मे प्रमाणे तारणे-तारुण्ये यौवनमा समणत्तण करेउ दुक्कर-श्रमणत्व क्तुं दप्करम् शास्त्रिनु पालन ५५ भूम। ४९५ छ .
ભાવાર્થ ચાહે ગમે તે સમજદાર તેમ જ શક્તિશાળી માણસ કેમ ન હો, પર તુ તે જે રીતે પ્રજવલિત અગ્નિશિખાનું પાન કરી શકતો નથી એ જ પ્રમાણ હે પુત્ર ! યૌવન અવસ્થામાં ચારિત્રનું નિર્દોષ પાલન પણ થઈ શકતું નથી માટે ડાહ્યો થા અને આચારિત્રપાલનના સ્વપ્ન સેવવાનુ છોડ એમાં જ તારી ભલાઈ છે tal __ 4जी ५-"जहा दक्ख" त्यात
मन्पयार्थ- पुत्र जहा-यथा २वी शते कुत्थलो-कुत्थल. जाने वा यस्स भरेउ दुक्रव-पातेन भत दक्ख वायुथी सरवा मसाध्य छ-मध्य छ तहा-तथा से प्रभारी कीवेण समणतण करेउ दुक्ख कीबेन बमणस कतु