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________________ ट प्रियदर्शिनी टाका . .९ मृगापुनरिनवर्णनम् पुनदृष्टान्तमाहमृगम्-अडाणं जो महत तुं, सपाहिज्जो पर्वनई । गच्छते से मुंही होडे, छहातहाविवजिओ ॥२०॥ छाया- वान यो महान्त तु, सपाथेयः प्रपद्यते । ___गच्छन् स सुग्गी भवति, भुत्तृष्णाविवर्जितः ॥२०॥ टीका--'अद्वाण' इत्यादि । यस्त पुस्पः सपाथेय पायेयमन्ति'-स शम्मल. सन महान्तम अवान अपने-गन्छति । गन्छन स क्षुत्तृष्णाविवर्जित सन् सुसी भवति ॥२०॥ रोगादिकों से। यद्यपि देवगति में रोग नहीं है फिर भी मानसिक ग्वों से भी दु.ग्वित बने रहते है। तिर्यश्चगति मे तथा मनुष्यगति मे व्याधि और रोग प्रत्यक्ष प्रतीत होते है । नरको मे दस प्रकार की वेदना जन्य दु ग्व शास्त्रों में वर्णित ह ही ॥ १९ ॥ फिर दृष्टान्त कहते है--'अदाण' इत्यादि। अन्वयार्थ--(जो-घ) जो प्राणी (सपाहिजी-सपायेय:) पायेयक्लेवा-सहित होरर (अद्धाण पवनइ-अचान प्रपयते) लम्बे मार्ग को पार करता है (से-स) वह गन्छ ते-गन्छन्) चलते २ कभी भी (छुहा तण्हा विवजिओ-क्षुत्तृष्णा विवर्जित क्षुधा एव तृष्णाकी पीजा को प्राप्त नही होता है। इस तरह ,(सुट्टी होड़-सुरती भवति) वह सुखपूर्वक इष्ट स्थान पर पहुँच कर आनदित होता है। भावार्थ:-"पास मे तोसा तो मजिल का भरोसा" इस कहावत के अनुमार जो मनुप्य घर से कलेवा-भाना चापकर दूमरी जगह દુખી રહ્યા કરે છે દેવગતિમાં રોગ નથી તે પણ માનસિક દુખોથી તે દુખિત બનેલા રહે છે, તિર્યંચ ગતિમા તથા મનુષ્ય ગતિમા, વ્યાધિ અને પ્રત્યક્ષ દેખાવ છે નરકમા દસ પ્રકારના વેદનાજન્ય દુ ખ શાસ્ત્રોમાં વર્ણવેલ છે૧૯t पछी दृष्टात छ---"अद्धाण" त्याला सान्या --जो-य २ माया सपाहिज्जो-सपायेय माताने माचे १४ अद्वाण परजइ-अ वान प्रपद्यते सामा भाग न पा२ ४३ छ से-स ते गच्छते-गाउन यासता यासता पण स्थणे छुहा तण्हा वि वजिओ-क्षु प्णाविवर्जित. भूम मने तसनी पिडाने लागवतो नयी या प्रमाणे ते सुही होइ-सुरगी भवति સુખ પૂર્વક પિતાના કારેલા સ્થળે પહોંચીને આનદ પામે છે ભાવાર્થ-પાને જો હોય ભાતુ તે સફરમા જાય ગાતુ” આ કહેવત અનુસાર
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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