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________________ - उत्तगणयन पुरा चर्पगतनी पीतममाणान पाया त्या भागस्यान्य, फनयुदयुदमत्रिम फेनसुदतुल्ये, अग्गिन गरीरे भारतिम भानन्द नीपरमेम्न मानोमि। "फन चुदसनिमें" इत्यनेन पाल्यादिसर्गरम्यागा मरण मान्यति मनितम् ॥१३॥ एर भोगनिमन्त्रणपरिटारमभिधाय सम्मति प्रगुतम्यर समानिदस्य हेतुमाहमूलम्-माणेसते असारम्मि, वाहीरोगाण आलंए । जरामरणपत्थम्मि, खणं पिनं रमामह ॥१॥ मे तथा अभुक्तभोगावस्था में-पाल्य आदि अवस्था में अपना पश्चाद यथास्थिति वाली आयुकी समाप्ति के याद में तथा पुरा मो वप स पहिले भी (चड़यावे त्यक्तन्य) अवश्य त्याज्य तथा (कणगुन्युयसन्निभर फेन बुधुदसन्निभे) पानी के बुदघद के समान इम (सरीरमि-शारीर) शरीर म (अह रह नोवलभाम-अद रतिन उपलभे) मुझे कोई आनंद उपलब्ध नहीं होता है। भावार्थ-मृगापुत्र ने मातापिता से यह भी कहा कि जय यर शरीर अनित्य एव पानी के बुदबुद समान शीघ्र ही विनष्ट हो जान वाला है। तथा यह भी कोई निश्चय नहीं है किजीव को जितनी भायु का घध हुआ है वह उसको उतनी ही भोगकर समाप्त करेगा इस के पहिल वह शरीर का परित्याग नहीं करेगा। अथवा भुक्तभोगावस्था के बाद हा इसका मरण होगा अभुक्त भोगावस्था में नहीं, तब ऐसी स्थिति में आप ही कहो आनद मानने के लिये यहा जगह ही कहाँ है ॥ १३ વસ્થામા, બાલ્ય આદિ અવરથામાં અથવા પછીથી આયુષ્યના પૂર્ણ થયા પછીથી तथा पू२॥ स १५ मा ५९ मरे॥२ चइयवे त्यक्तव्ये त्यापायाश्य फेणध्वय सन्निभे-फेनबुदवसन्निभे पाणीना ५२पोटश भा सरीरमि शरार शरीरमा अह रह नोग्लभाम-अह रतिन उपलमे भने तनो भान દેખાતે નથી ભાવાર્થ-બૃગાપુત્રે માતા પિતાને એ પણ કહ્યું કે, જ્યારે આ શરીર પાણીના પરપોટાની જેમ જલદીથી નાશ થઈ જનાર એવું અનિય છે વળી એ પણ કોઈ નિશ્ચય નથી કે, જીવને જેટલા આયુષ્યનો અ ધિ થયેલ છે તે એટલું ભાગીને સમાપ્ત કરશે તેના પહેલા આ શરીરનો પરિત્યાગ કરશે નહી અથવા ભુકત ભેળાવસ્થા પછી જ તેનુ મરણ થશેઅભકત ભગાવસ્થામાં નહી એવી સ્થિતિમાં આપ જ કહો કે, આને દ માનવા માટે અહી જગ્યાજ કયા છે
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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