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________________ यदर्शिनी टीमा य. १८ महापद्मकथा तथामूलम्-चइती भारह वास, चकवट्टी महिडिओ। चहत्ता उत्तमे भोगे, महापैउमो तव चरे ॥१॥ आया-त्यक्त्वा भारत पं, चक्रवर्ती महर्दिकः । त्यक्त्वा उत्तमान् भोगान, महापद्मस्तपोऽचरत् ॥४१॥ टीका-'चडत्ता' इत्यादि । महदिर चतुर्दशरत्ननवनिपानादियुक्तो मुनि सुत्रतशासने महापद्मनामा नवम वर्ती भारत वर्ष त्यक्त्वा, तथा-उत्तमान् भोगान् त्यतया तप. अचरत् ॥४१॥ :जार माधुओ के माथ अनशन करके आयुके अन्त में सिद्धिपद मास पिया । इन्द्रों ण्य देवोंने मिलकर इनका निर्वाणमहोत्सव मनाया ॥४०॥ ॥ इस प्रकार यह अरनाथ प्रभुकी कथा है ॥ नथा-'चइत्ता' इत्यादि। अन्वयार्थ-(महडिओ-महर्दिक:) चौदह रत्न एव नवनिधि आदि महासद्धियों के अधिपति (चकवट्टी-चक्रवर्ती) नवमचक्रवर्ती (महापउमो -महापद्मः) महापदाने जो मुनि सुव्रत स्वामी के शासनकाल में हुए हैं। (भारह चास चइत्ता-भारत वर्षम् त्यक्तवा) इस समस्त भारतवर्ष का परित्याग करके तथा (उत्तमे भोगे चडत्ता-उत्तमान् भोगान् त्यक्त्वा) उत्तम भोगोंका परित्याग करके (तव चरे-तपः अचरत् )तपस्याकी आराधना की। और सफल कर्मों का क्षय करके मोक्ष पधारे ॥४॥ એક હાર સાધુઓની સાથે અનશન કરીને આયુષ્યના અંતમાં સિદ્ધિપદને પ્રાપ્ત કર્યું ઈન્દ્ર અને દેવાએ મળીને તેમને નિર્વાણ મહોત્સવ મનાવ્યું છે આ પ્રમાણે અરનાથ પ્રભુની આ કથા છે કે तथा-"चदत्ता' मन्वयार्थ-महडिओ-महद्धिकः यौहरन भने नपनि माहि मला काय सोना मधपति चक्काट्टी-चक्रवर्ती नवमा यता महापउमोन्महापद्मः महाप नेमा मुनि सुरत स्वामीना शासन मा या छ भारह वास चइत्ता-भारत वर्षम् त्यत्तवा या सपणा सारत ना परत्याग उरीन तथा उत्तमे भोगे चइत्ता-उत्त मान् भोगान त्यक्त्वा उत्तम सागाना परित्याग ४रीन तव चरे-तप अचरत તપયાની આ ધના કરી, તથા સકળ કમેને ક્ષય કરીને મેક્ષમાં પધાર્યા ૪૧
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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