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________________ २१२ उत्तगध्ययनसत्र - - तथा-- मूलम् -चइता भारह वास, चकाही महडिओ। संती सतिकरे लोएं, पत्तो" गडेमणुतरं ॥३८॥ छाया-त्यक्ता भारत पे, चक्रवर्ती महदिकः । शान्ति, शान्तिकरो रोक, प्राप्तो गतिमनुत्तराम् ।।३८॥ 'टीका-'चइत्ता' इत्यादि। मादिका तुर्दशरत्नन निधानादियुक्तः चक्रवर्ती पचमचक्रवर्ती लोके त्रिभु ने शान्तिः शान्तिकारक, अनेन तीर्थकरत्व मचितम् , शान्तिःशान्तिनाथ नामा पोडशस्तीर्थङ्करी भारत पै त्यतया भट् चण्डमादि परित्यज्य अनुत्तरा सर्वोत्कृष्टा सिद्रिरूमा गतिं माप्त ॥३८॥ तथा-'चइत्ता' इत्यादि। अन्वयार्थ--(महडिओ-महर्दिकः) चौदह रत्न एव नवनिधि आदि ऋद्धियों से युक्त (चकवटी-चक्रवर्ती) पचमचक्रवर्ती (लोग सति - करे-लोके शान्तिकर.) तथा विभुवन में सर्वप्रकार से शांतिके कर्ता (सति-शान्ति) ऐसे शातिनाथ प्रभुने भी जो के सोलहवें तीर्थकर हुए हैं (भारह वास-भारत वर्षम् ) पट्खड की ऋद्धिका (चइत्ता-त्यत्तवा) परित्याग करके (अणुत्तर गई पत्तो-अनुत्तरा गति प्राप्त) सर्वोत्कृष्ट सिद्विरुप गतिको प्राप्त किया है। सिज्झइ जाब सन्न दु खाणमत करेइ । जहा से सणकुमारे राया चाउरत चक्कही। तच्चा अतकिरिया"। છે સનતકુમાર ચકવતની કથા સમાપ્ત છે तथा--"चइत्ता' त्यादि सन्क्याथ-महडिओ-महदिक यौन मने नवविधि पारिद्धिमाथी युत चकाट्टी-चक्रवर्ती पायमा Asaf लोए सतिकरे-लोके शान्तिकर तथा त्रिभुवनभा शतिना ४२ता मेवा सति-शान्ति शातिनाथ प्रभुमे ५५ रेसा णमा ती ४. थया छ तेभर भारह वास-भारत वर्षम् ५५उनी दिने चइत्ता-त्यत्वा परित्याग तीन अणुत्तर गइ पत्तो-अनुत्तरा गति प्राम. सत्कृिष्ट સિદ્ધિરૂપ ગતિને પ્રાપ્ત કરેલ છે
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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