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________________ १२४ उत्तराध्ययनसूत्रे ततः किं कृतवानित्यार--- मूलम्--सओ चैडउ रंज, निखितो जिणसासणे । गदालिस्स भर्गवओ अणगारस्स अंतिए ॥१९॥ छाया-सजयस्त्यतया राज्य, निफ्रान्तो जिनशासने । गर्दभालेभगवतः, अनगारस्य अन्तिके ॥१९॥ टीका-'सजओ' इत्यादि। ___ सवेगनिर्वेदममापन्न' सजग नामको राजा राज्य त्यक्त्या भगवतो गर्द भालेरनगारस्य अन्तिके समीपे जिनशामने निप्फ्रान्त प्रजित. ॥१९॥ एर गृहीतमवज्यो गीतार्थों नित्यकर्मरूप दविधचक्रवालसामाचारीरत स मजयोऽनगारो गुरोरादेशाद् प्रतिबद्धविहारितया एकाफी विहरन् कश्चित् सनिवेश जगाम, तत्र यदभूत्तदुच्यते-- मूलम्--चिच्चा रंज पāइए, खत्तिए परिभासँई। जहाँ ते दीसइ रूंव, पसन्न ते" तहा मंणो ॥२०॥ छाया--त्यत्तया राज्य प्राजितः, क्षनिय, परिभापते । यथा ते दृश्यते रूप, प्रसन्न ते तथा मनः ॥२०॥ टीका-'चिच्चा' इत्यादि। कश्चित्तनिय. राज्य त्यक्त्वा परित्यज्य मनजिता मत्रज्या गृहीतवान् । अय हि क्षत्रियराजऋषिः पूर्वजन्मनि वैमानिक देव आसीत् । ततश्चयुतः क्षत्रिय फिर राजा ने क्या किया सो कहते हैं-'सजओ' इत्यादि । अन्वयार्थ-(सजओ-सयत) सवेग एव निर्वेद से युक्त सजय राजा ने (रज चइउ-राज्य त्यत्त्वा) राज्यका परित्याग करके (अणगारस्स गद्धभालिस्स भगवओ-अनगारस्य गर्दभाले भगवत) मुनिराज गर्दभालि महाराजके (अतिए-अन्तिके) पास (जिणसासणे निक्वतोजिनशासने निष्क्रान्त) दीक्षा धारण करली ॥१९॥ 20 ५४ी MY Y ज्यु तेने छ --"सजओ" त्यादि। मन्वयाथ-"सजो-सयत से सने निवेयी युत स४५ सय रज चइउ-राज्य त्यतया शयनी परित्याग ४शन अगगारस्स गद्धभालिस्स भगवओ-अनगारस्य गर्दभाले भगवत मुनिरा गलामी महारानी अतिएअतिके पासे जिण मासणे निकग्वतो-जिनशासने निष्क्रान्त दीक्षा ५ ४२ ४३N Intell
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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