SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1089
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९५७ - प्रियदर्शिनी का अ २३ श्रीपार्श्वनायवरितनिरूपणम केगी प्राहमूलम्--भोगू य इड के वुत्ते. केसी गोयममर्चवी। तओ के सि धुंवत तु, गोयमो इर्णमब्वी ॥७७॥ छाया--भानुश इति क उक्त., केशो गोतममब्रवीत् । तत' केशिन ब्रुपन्त तु, गोतम इदमनवीन ॥७७॥ टोका--भाग य इत्यादि । अस्या व्याग्या पूर्ववद् थो.या ॥७७|| गौतम' प्राह-- मृलम्-उग्गओ खीणससारो, सवण्णू जिणभक्खरो। ___ सो करिस्सह उज्जोय, सबलोयम्मि पाणिण ॥७॥ छाया-उद्गत क्षीणसमार , सर्वज्ञो जिनभास्कर । स करिष्यति उद्योत, सर्वलोके णिनाम् ॥७८॥ टीका-'उग्गओ' इत्यादि। सीणससार.-सीण -विनष्ठो भवभ्रमणरूप ससारो यम्य स तया, अर गतभपभ्रमण सर्वज्ञ =सर्वपदार्यरेता जिनभास्कर =तीर्थकररूप सूर्य उद्गत = वाला निर्मल सूर्य उदिन हो गया है। वहीं इस समस्त जगतवर्ती प्राणियों को प्रकाश देगा ॥७॥ गौतमस्वामी के इस कथन को सुनकर के केशीश्रमणने उनसे पूछा--'भाशय' इत्यादि। हे गौतम । जिमको आर मर्य करते है वह मर्य कौन है । इस प्रकार केगी के पूछने पर गौतमस्वामी योले ॥७७॥ ___ गौतमस्वामी क्या बोले सो कहते है--'उग्गओ' इत्यादि । हे भदन्त । सर्वज जिनेन्द्र देवही एक सूर्य स्वरूप है। इनका भवવાળા નિર્મળ સૂર્ય ઉગેલ છે તે આ સઘળા જગતના પ્રાણીને પ્રકાશ આપશે ઉદ્દા ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રકારના કથનને સાભળીને કેશી રમણે તેમને પૂછ્યું 'भाणू य इत्यादि। છે ગૌતમ! જેને આપ સૂર્ય કહે છે, એ સૂર્ય કેણ છે? આ પ્રમાણે કેશી શ્રમણના પૂછવાથી ગૌતમસ્વામીએ કહ્યુ ૭ળા गातभरपाभी शु छु तर उ छ-" उग्गओ" त्या ! હે ભદન્ત ! સર્વ જીતેન્દ્ર દેવજ એક સૂર્ય સ્વરૂપ છે તેમને ભવભ્રમણરૂપ
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy