SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1024
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८९० उत्तराभ्ययनुस् मूलम्-वारसगेविऊ बुंहे, सीससंघसमाउले। ___गामार्णगाम रीयते, 'से'वि साँवत्यिमार्गए ॥७॥ । छाया--द्वादशाहाविद् बुद्ध, गित्यसरममाफुल । ग्रामनुग्राम रीयमाण', सोऽपि श्रावस्तीमागतः ॥७॥ टीका--'भारसगरिक' इत्यादि । द्वादशागवित आचारातादिद्वादमागज्ञानसम्पन्नो बुद्धो-जीवानीवसकल्प दार्थज्ञः स गौतमोऽपि ग्रामानुग्राम रीयमाणो विहरन् श्रावस्ती नगरीमागत. ॥७॥ मृलम्-कुटंग नामें उन्नाण, तम्मि नगरंमडले । फासुए सिजसथारे, तत्थ बासमुवागए ॥६॥ छाया--कोष्ठक नाम उद्यान, तम्या नगरमण्डले ) मामुकशायासस्तारे, तर वाममुपागतः || दीका-~~-'कुटग' इत्यादि। । । चतुर्थगाथापदस्या व्याख्या गोभ्या ॥८॥ शिष्य थे जो महायशस्वी थे ॥२॥ . 'चारमगविऊ' इत्यादि। . ' अन्वयार्थ ये गौतम स्वामी (सरसगविऊ-द्वादशावित्) छाद । शागी के वेत्ता एव (बुद्धे-बुद्ध) जीव अजीव आदि सर्व पदार्थो के ज्ञाता थे। (गामाणुगामरीयते-ग्रामानुग्राम रीयमाण -ग्रामानुग्राम विहार करते हुए (से-स) ये गौतम स्वामी भी अपनी, (सीससघसमाउले-शिष्य सघसमाकुल )-शिप्यमडली सहिल उसी (मावत्थिमागए-श्रावस्ती मागत.-श्रावस्ती नगरी मे आये) ॥७॥ - મહાન યમસ્વી અને લોકોને આ ધારામાથી ઉજાસમા લઈ જનાર એવા મહાકાવિત એવા શિષ્ય હતા પેદા ___ "वारसगविऊ उत्साहित यार्थ- गौतम स्वामी वारसगविक-द्वारशावित aaslat यत्ता भने बुद्ध-बुद. ७ ७ मा सा पहायाना शlal sit गामाणुगाम रीयते ग्रामानुग्राम रीयमाण यामानुआम विडार ४२ता ३२ता से-स थे गौतमस्वामी ५५ सीससयसमाउले-शिष्यसयसमाकुल वातानी शिष्य भउजी साथे सावश्विमागए श्रावस्तीमागत से श्रावस्ती नगरीमा गावी 48*41 ७ । ।
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy