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________________ ४६ उत्तराध्ययनसूत्र क्तानियोशुपण्डकादि वर्जितानि, शयनासनानि, तर शयनानि-शग्या सम्तारकादीनि, आसनानि पीठफल शादीनि, उपलक्षणत्वात् स्थानानि अन्यन्यपियक्षमूलादी नि रुपणि च सेवेत, स निग्रन्थो भाति । इत्य रिधिमुखेनाभिगाय निषेधमुख नाह-'नो इत्थी' इत्यादि-यः साधु सीपशुपण्डरससक्तानि, तत्र-रिय - दिव्या मानुप्यो वा, पशवः अजैड कादयः, पण्डकानपुसकानि एते. ससक्तानिसहितानि शयनासनानि सेविता उपभोक्ता भाति, स नो-न निग्रन्यो भवति । स्त्री पशुपण्डकादि रहितस्थानस्यैव सेग्नेन निग्रन्थत्व भवतीति यदुन्यने-तत्क थम्नकिमत्र कारणमिति शिष्यजिज्ञासा भवतिचेत्तर आचार्य आह-'निग्गयस्स' इत्यादि-स्त्रीपशुपण्डरससक्तानि शयनासनानि सेयमानस्य ब्रह्मचारिण. निग्रंन्यस्य ब्रह्मचर्य ग्वलु-निश्चयेन शङ्का वास्यादिभिरत्यन्तापहृतचित्ततया मिथ्यात्वोदये सति मैथुनसेवने नवलक्षमूक्ष्मजीवाना विराधना भवतीति' जिनोक्त सत्य वा मिथ्या सयाइ सेविना से निग्गथे-विरिक्तानि शयनासनानि सेवेत स निग्रंथ,) विविक्त-स्त्री पशु पडक आदि से पर्जित-शयन-ग्या, सस्तारक आदि तथा आसन-पीठ फलक आदि तथा स्थान-जगह आदि को सेवन करता है वही निथ कहलाता है । इस प्रकार विधिमुग्व से कयन कर सूत्रकार अब इसी विषय को निषेधमुग्व से प्रतिपादित करते है-'नो' इत्यादि । (नो इत्थी पसु पडग ससत्ताइ सयणासयाइ सेवित्ता हवइ से निग्गथे-नो स्त्री पशु पडकससक्तानि शयनासनानि सेविता भवति स निर्ग्रन्थ.) जो सायु शयन और आसन आदिको स्त्री पशुपडक आदि से ससक्त हुए सेवित करता है--दिव्य स्त्री, मानुष स्त्री, पशु स्त्री, पडक-नपुसक इनसे सहित शयनआसन आदि का उपभोग करता हैवह निर्ग्रन्य नहीं है। स्त्री पशु पडक आदि से ससक्त पीठ फलक आदि के सेवन करने से निग्रन्य क्यों नहीं होता है इस बात का समाधान निग्गथे-विविक्तानि शयनासनानि सेवेत स निग्रॅन्य विपित-श्री, पशु, ५७६ આદિથી વઈત-શયન-શમ્યા સસ્તારક આદિ તથા આસન-પીઠ ફલક આદિ તથા સ્થાન-જગ્યા આદિને સેવન કરે છે તેજ નિગ્રંથ કહેવાય છે આ પ્રમાણે વિધિ મુખથી કહીને સૂત્રકાર હવે એજ વિષયને નિષેધ મુખથી પ્રતિપાદિત કરે છે “નો त्याहि नो इत्थी पसुपडग ससत्ताद सयणासयाइ सेविता हवइ से निग्गथे-नो स्वीषु पशुपडक ससक्तानि शयनासनानि सेविता भवति स निग्रंथ २ साधु शयन भने આસન આદિને સ્ત્રી, પશુ, પડક આદિથી દૂર રહીને સેવન કરે છે દિવ્ય બા, માનુષ સ્ત્રી, પશુ સ્ત્રી, પહક-નપુસક એમનાથી સહિત શયન-આસન આદિને ઉપભોગ કરે છે તે નિગ્રંથ નથી સ્ત્રી, પશુ, પેડક આદિથી સસક્ત પીઠ ફલક
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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