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प्रियदर्शिनी टोका अ० ३ गा० १७ दशानप्रदर्शनम्
| c২৩ टीका-'खित्त' इत्यादि।
क्षेत्र ग्रामोद्यानादि, नास्तु-खातोट्रित-तदुभयरूप, तर खात-भूमिगृहादि, उच्छूित-प्रासादादि, तदुभय भूमिगृहोपरिस्थः प्रासाद., हिरण्य-सुवर्णम् उपलक्षणमेतद् रूप्यादीनामपि, पशा गोमहिपीगजतुरद्मादयः। दासपौरुषेय-दासाचेटकाश्चैटयथ, पौरुषेया-पुरुपा. पदातयश्च, एपा समाहार दासपौरुषेयम् । एते चत्वारः चतु सख्यकाः, अन क्षेत्र वास्तु चेत्येक , हिरण्यमिति द्वितीयः, पराव इति तृतीयः, दासपौरुषेयमिति चतुर्थः, कामस्कन्धा.-कामाः-काम्यन्ते. अभिलष्यन्ते इति कामा कामभोगहेतमः, त एव स्कन्धा तत्तत्पुद्गल्समूहाः यत्र भान्ति, तर-तेपु कुलेपु, स उपपद्यते-उत्पद्यते । जनेन एकमगमुक्तम् । 'कामखधाणि' इति प्राकृतत्वानपुसफनिर्देश. ॥ १७॥
अवावशेषाणि नवागानि गोधयितुमाहवहा उसको दस १० प्रकार की भोगोपभोग की सामग्री प्राप्त होती है। उस को कोई न्यूनता नहीं रहती ॥ १६ ॥ . उसी १० प्रकार की सामग्री को सूत्रकार इस गाथाद्वारा कहते हैं
'खित्त' इत्यादि। ___ अन्वयार्थ-(खित्त क्षेत्रम् ) ग्राम, उद्यान आदि क्षेत्र (वत्यु-वास्तु) वास्तु
भूमिगृह आदि, उच्छूित-प्रासाद आदि, उभय-भूमिगृह और उसके उपर बना हुआ प्रासाद (हिरण्ण-हिरण्यम् ) सुवर्ण-उपलक्षण से रूप्यादिक (पसवो-पशव.) गाय भैस, हाथी घोडा आदि (दास पौरुस-दासपौरपेयम् ) चेटक चेटी, आदि दास, पदाति आदि पौरुषेय ये (चत्तारि
चत्वारः) चार-१ क्षेत्रवास्तु, २ हिरण्य, ३ पशु, ४ दास-पौरुषेय, तथा -(कामखवाणि-कामस्कन्धाः) कामभोगके हेतुरूप स्कध-पुद्गलसमूहजहा होते हैं ऐसे कुलो में वह जीव (उववज्जइ-उपपयते) उत्पन्न होता થઈ ત્યા અવશિષ્ટ બચેલા પુણ્યના દશ પ્રકારના ભોગઉપભોગની સામગ્રી પ્રાપ્ત થાય છે, અને કઈ પ્રકારની ખાટ ન્યૂનતા રહેતી નથી કે ૧૬ से शारनी सामयीन सू३४२ मा आय दारा विछे-खित्त-त्याही
सन्वयार्थ:-खित्त-क्षेत्रम् ग्राम Gधान विगेरे क्षेत्र वत्थु बास्तु भूमि मा (१) छित (GRI) प्रासाई (41) (२) उलय भूमित्र भने तेना ५२ मत प्रामाह-मालय (3) हिरण्ण-हिरण्यम् सुवर्ण क्षयी प्याxि पसवो-पशव गाय, लेस, थी, घो। माहि दास पौरुस-दासपौरुपेयम् 2८४ 2ी-माहास पहाति माहि पी३५य से चत्तारि-चत्वार यार क्षेत्र परतु, २९य, पशु हास-पी३य-तथा कामसवाणि-कामस्कन्धा दाम नागना हेतु ३५ ४५-पुल समूह क्या डाय छे सवा मा त उववज्जइ-उपपद्यते