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________________ ६४७ मियदर्शिनी टीका ३० ३ गा०९ क्रियमाणकृतविषयक विचार नास्ति, किं तु क्रियते, एपमुक्ते सति स जमालिमिथ्यात्वमोहनीयोदयात् सम्यस्वपरिभ्रष्टः सन् व्यचिन्तयत्-क्रियमाण कृतमिति जिनोक्त सत्यं न भवितुमर्हति, यत्तोऽय सस्तारकः क्रियमाणो न कृतः संस्तीर्यमाणोऽपि न सस्तृत इत्युच्यते । इति मनसि विचिन्त्य तन सान मुनीनाहूय जमालि प्राह-यत् क्रियमाण तत् कृतम् , यञ्चलत् तचलितम्, यदुदीयमाण तदुदीरितम् , इत्यादि श्रीमहावीरस्वा. मिना यद् भापित तत् खल मिथ्या, क्रियमाणे सस्तारके शयनरूपार्थसाधकत्वाभावेन कृतत्वामानात् । जमालि ने उनसे पार २ पूछना शुरु किया कि सस्तारक किया या नहीं ? उन्हों ने कहा सस्तारक अभी नहीं किया है कर रहे हैं। इस प्रकार जर उन्हों ने कहा तय मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से सम्यक्त्व से पतित होकर जमालि ने विचार किया कि " क्रियमाण कृतम्" जो किया जा रहा है वह "किया गया" ऐसा जो जिन भगवान ने कहा है वह सत्य नहीं हो सकता है, क्यों कि सस्तारक क्रियमाण है वह " कृतः" किया गया ऐसा नहीं कहा जा सकता है। उसी तरह यह तो अभी " सस्तीर्यमाण" है निाया जा रहा है, इसे "सस्तृतः" विछ गया है, ऐसे कैसे कर सकते हैं। इस प्रकार विचार कर उन्हों ने अपने समस्त शिष्यों को बुलाकर कहा कि देखो भगवान् वीर प्रभु जो ऐसा कहते हैं कि "क्रियमाण कृनम्" "यच्चलत् तत चलितम्" "यदुदीर्यमाण तदुदीरितम् " जो क्रियमाग है वह किया गया है, जो चल रहा है वह चल चुका है, जो उदय में आ શિષ્યોએ કહ્યું કે, સસ્તાર૦ હજુ કરેલ નથી પરંતુ કરીએ છી એ આ પ્રકારે જ્યારે શિએ કહ્યું, ત્યારે મિથ્યાત્વ મોહનીયના ઉદયથી સમ્યકૂવથી પતિત 45 मालिस पियार ४या , “ क्रियमाण कृत" २ ४२वामा माछते “થઈ ચૂકયુ ” એવું જે જીન ભગવાને કહ્યું છે તે સત્ય ઠરતુ નથી કેમ કે સસ્તાર ક્રિયમાણ છે તે “મૃત ” થઈ ચૂકયુ છે એમ કહી શકાય નહિ या प्रमाणे या २ मा "सस्तीर्यमाण" छ-माछापामा यावे छ ने બીછાવી દીધલ છે એમ કેમ કહી શકાય ? આ પ્રમાણે વિચાર કરીને તેમણે પિતાના સમસ્ત શિષ્યોને બોલાવીને કહ્યું કે, જુઓ ભગવાન વીર પ્રભુ જે એમ हे छ, “क्रियमाण कृतम् " " यच्चलत् तत् चलितम्" " यदुदीर्यमाण तद् दीरितम्" यमाय छे थई यूश्यु छ, यही २यु छ, ते यासी
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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