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विषय
४१ निरर्थक भाषण बोलने का निषेध और उस विपयमे दृष्टान्त
४२ मार्मिक भाषण बोलनेका निषेध और धनगुप्त श्रेष्टिका दृष्टान्त
४३ अन्य का ससर्गसे होनेवाला दोपका परिहार और ब्रह्मचारिका वर्तव्य
२१६-२१८
४४ ब्रह्मचारिका कर्तव्य और शिष्यों को शिक्षा २१८-२२७ ४५ एपणा समिति विषयक विनय धर्म का कथन २२७-२३३ ४६ गृहपणा समिति की विधि ४७ ग्रासैपणा की विधि
२३३-२३५
२३५-२३६
४८ वचनकी यतना (नियमन) की विधि
२३६- २४१
५० सत् शिष्य की भावनाका वर्णन
५१ विनीत शिष्य को विनय सर्वस्व का उपदेश द्वारा शिक्षा का वर्णन
४९ विनीत शिष्यको और अविनीत शिष्य को उपदेश
५२ युद्धोपधाती न बनने के विपयमे वीर्योल्लासाचार्यका दृष्टान्त
५४
५३ आचार्य महाराज कुपित होनेपर शिष्य के कर्तव्य का उपदेश
पृष्ठाङ्क
२०५ - २०७
देनेमे फल का भेद और कुशिष्यकी दुर्भावना २४२ - २४५
२४५-२४६
२०७ - २१६
अध्ययन के अर्थ का उपसहार और आचार्यादिकों का प्रसन्न होनेपर फल
२४७-२४८
२४९-२५३
२५३-२५८
२५८-२६०
५५ श्रुतज्ञान के लाभका फल और श्रुतज्ञान का लाभ होने पर मोक्षप्राप्ति अथवा देवत्व प्राप्तिका वर्णन और प्रथमTध्ययन समाप्ति
२६१-२६५
५६ द्वितीयाध्ययन प्रारम्भ - वाईस परीषदों का प्रस्ताव
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