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पिपय
पृष्टाङ्क२२ क्रोधको निष्फल बनानेम दृष्टान्त ९३-९६ २३ मरासाम मुनिको अपना उत्कर्षका त्यागका उपदेश ९७-९८ २४ अपनी निन्दा मुनिको जपर्प (हलकापना) का त्याग करनेका उपदेश
९९-१०१ मात्मामा दमन करनेसेही क्रोधका निष्फल नासकते है इस हेतु से आत्मदमनका उपदेश और उम विषयम अनेक दृष्टान्त १०२-१२७ विनयका उपदेश और उस विषयम जासन पिनय पृच्छा प्रकार विगेरह विनयशालि होने का दृष्टान्त
१२८-१३७ २७ पिनीत शिग्यको वाचनादानका प्रकार १३८-१४० २८ सूत्र शब्दका अर्थ और मन निक्षेप लक्षण १४०-१४४ २९ मूनके ३२ दोपोका वर्णन
१४५-१५६ सुनके आठ ८ और उद ६ गुणों का वर्णन १५६-१६० ३१ मुत्रका भेद और सूनका उन्चारणविधि १६०-१६३ ३२ सूनके बोलनेम दोपोका कथन १६३-१६८ ३३ वाचना द्वारका वर्णन
१६९-१७३ ३४ वाचना द्वारके विपयमे राजाका दृष्टान्त १७३-१७५ ३५ सूनायकापौनापर्य निरूपण नामका आठवा द्वारका वर्णन
१७५-१७९ सून अर्थ एप सूनाथम यथोचर परलताका
कयन नामका ननमा द्वारका वर्णन १८०-२८४ ३७ निरवध भाषणनिधि
१८४-१९२ ३८ निरवद्य भाषा का भेद
१९३-२०० ३९ साद्य भाषण गोलनेका निषेध २०१-२०२ ५० सावध भाषणके विषयमे अश्वपतिका दृष्टान्त २०३-२०५