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________________ प्रियदर्शिनी टीका ज० २ सू० ४ द्वाविंशतिपरीपदनामानि २७३ टीका -- तद् यथा - क्षुधापरीपर. दिगिठाशन्दो देशीयः क्षुरार्थे वर्तते । सैन परीपः परिपते इति परीपहः ॥ १ ॥ विपासापरीपर – पिपासा = उपा, सैन परीपहः, एन सर्वन परपदार्थेन समानाधिकरण्य बोध्यम् ||२॥ शीतपरपरः - शीत- हेमन्त शिशिरयोजतः श्रीतस्पर्श, तदेन परीषदः शीतपरीपहः ॥३॥ उष्णपरीपहः- उष्ण- ग्रीष्म जातस्तापरूप उष्णस्पर्शः, तदेव परीपहः॥ ४ ॥ दशमशकपरीपहः – दशमशकाः प्रसिद्धा त एन परीपदः दशमशकपरीपहः, दशमशकाः परीपहत्वयन्त इत्यर्थ', तन परोपहत्वगतैकत्वनिक्षया परीपद इत्येकवचनम् ॥ ५ ॥ अचैल = चैलाभानः जिनकल्पिकविशेपणाम् । स्थविरकल्पिकाना तु जीर्ण खण्डितमल्पमूल्य प्रमाणोपेत च चैल सदध्यचैलमेव । तदेन "इमे" - इत्यादि । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जिन २२ परीपरों को सहन करने के लिए भिक्षुको आदेश दिया है वे २२ परीपर ये है " 5 दिगिशब्द देशीय शब्द है, इसका अर्थ क्षुधा है। दिगिछारूप परीपद का नाम दिगिंच्छापरीपह है |१| पिपासा - शब्द का अर्थ तृपा है। इसरूप जो परीपर है वह पिपासापरीपर है | २ | हेमन्त एव शिशिर ऋतु मे उत्पन्न शीतस्पर्श का नाम शोत है । इसरूप जो परीपर है उसका नाम शीतपरीपह है | ३ | ग्रीष्म ऋतु एव वर्षा ऋतु में उत्पन्न हुए ताप का नाम उष्णस्पर्श है । इसरूप परीपर का नाम उष्णपरीपर है | ४ | डास, मच्छर, बिच्छू, चिउटी आदि का नाम दशमशक है। इनके काटने की वेदनारूप जो परीपद है वह दशमशक परीपर है | ५ | वस्त्रका सर्वथा अभाव अचेल है, यह जिनकल्पियों को होता है । स्थविरकल्पियो जीर्ण, खडित, अल्पमूल्यवाले एव प्रमाणोपेत वस्त्र होते हैं तो भी उनको શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ જે ૨૨ પરીષહેને સહન કરવાને ભિક્ષુને આદેશ આપેલ છે તે ૨૨ પરિષદ્ધ આ છે દિર્નિચ્છારૂપ પરિષહનુ નામ દિîિચ્છાપરીષહ છે (૧) “ દિગિચ્છા ?, એટલે ભૂખ પિપાસા શબ્દનો અર્થ તૃષા છે, આ રૂપ જે પરીપડે છે તે પિપાસાપરીષહ છે (ર) હેમ ત અને શિશિર ઋતુમા ઉત્પન્ન થતા ઠંડા સ્પર્શનું નામ શીત પરીષહ છે (૩) ગ્રીષ્મ તથા વર્ષા ઋતુમા ઉત્પન્ન થતા તાપ રૂપ ઉષ્ણુ સ્પર્શ નુ નામ Goशपरीप छे (४) डास, भर७२, वीडी, भाउड, माहिनु नाम है शमश छे तेना કરડવાની વેદના રૂપ પરીષહ તે દશમશ પરીષહુ છે (૫) વસ્ત્રના સદા અભાવ તેઅંચેલ છે એ જીનપિને થાય છે સ્થવિરકલ્પિએના જીણુ, ખતિ અલ્પ મૂલ્યવાળા शोवा यथालोमोन नतेने असन मानवा लेखे मेवो
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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