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________________ ३७३ - शास्त्रपशस्ति - - साध्वी श्रीपार्वतीबाई, श्री हेमकुमरा ऽभिधा । वैयावृत्त्यैकशीला श्री, सम्झूबाई महासती ॥९॥ वांकानेरपुरस्थ एष परमोदारो महाधार्मिकः, शुद्धस्थानकवासिधर्मनिरतः सम्यक्त्वभावान्वितः । तत्वातत्वपयोविवेचनविधौ हंसायमानः सदा, सर्वेषामुपकारको विजयते श्री जैनसंघो महान् ॥ १० ॥ हुई विचर रही हैं, इनमें प्रथम महासतीका नाम प्रवर्तिनी श्री झाकलबाई स्वामी है, दूसरी महासतीका नाम श्री श्रीजी कुँवरबाई स्वामि है, तथा तीसरी महासतीका नाम श्री सन्तोकवाई स्वामी है। ये तीन ठाणों से स्थिरवास विराजती हैं ॥ ८॥ तथा महासती श्री पार्वतीवाई. स्वामी और महासती श्री हेमकुवरवाई स्वामी एवं सेवाभावी महासती श्री सम्झुवाई स्वामी यहाँ तीन ठाणों से विराजती हैं ॥ ९ ॥ वांकानेरका यह परम उदार महाधार्मिक श्री जैनसंघ सदा विजयशाली है। यह जैनसंघ शुद्ध स्थानकवासी धर्ममें निरत है तथा सम्यक्त्वभावसे युक्त है, एवं तत्व और अतत्व रूपो दुग्ध और जलके विवेचनमें हंसके समान है, और यह संघ सभी प्राणियोंका हितकारक है ॥ १० ॥ भासतानु नाम प्रतिनी झाकलवाई स्वामी छे. मी सतीनु नाम श्रीश्रीजीकुंवरवाई स्वामी तथा श्री सतीनुं नाम श्रीसंतोकवाई स्वामी छे. भा ऋष्य था। स्थिवास (मरारे छ (८). __ महासती ची पार्वतीबाई स्वामी तथा श्री हेमकुंवरबाई स्वामी मने सेवा५२सय] श्री समजुबाई स्वामी मी (A२ छ (6) ____पनेरन मा ५२म St२ महापार्भिश्री जैनसंघ सहा विन्यजी छे. આ જૈનસંઘ શુદ્ધ સ્થાનકવાસી ધર્મમા નિરત છે તથા સમ્યકત્વ ભાવથી યુક્ત છે અર્થાત તત્ત્વ અને અતવરૂપી દૂધ અને પાણીના વિવેચનમાં હંસ સમાન છે. અને આ સંઘ સર્વ પ્રાણીઓને હિતકારક છે (૧૦)
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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