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________________ सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ५ अ. १ निषधकुमारवर्णनम् ३६१ कालमासे कालं किच्चा उडूं चंदिमसूरियगहनक्खत्ततारारूवाणं सोहम्मीसाणं जाव अच्चुते तिण्णि य अट्ठारसुत्तरे गेविजविमाणावाससए वीहवयित्ता सबटुसिद्धविमाणे देवत्ताए उबवण्णे। तत्थ णं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमा ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं निसढस्स वि देवस्स तेत्तीस सागरोवमाइ ठिइ पन्नत्ता । से णं भंते ! निसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववजिहिइ ? वरदत्ता ! इहेव जंबूद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उन्नाए नयरे विसुद्धपिइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पञ्चायाहिइ. तएणं से उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते जोवणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलबोहिं बुझिहिइ, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पञ्चन्जिहिइ । से णं तत्थ अणगारे भवि-- स्सइ इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। से णं तत्थ बहुइं चउत्थछटुमदसमदुवालसेहिं मासद्धनासखसणेहिं विचित्तेहि तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिहिंइ, झूसित्ता सहि भत्ताइं अणसणाए छेदिहिइ । जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जाव अदंतवणए अच्छत्तए अणोवाहणए फलहसेज्जा कटुसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे पिंडवाओ लद्धावलद्धे उच्चावया य गामकंटया अहियासिज्जइ, तमटुं आराहिइ, आराहित्ता, चरिमेहि उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ जाव सबदुक्खाणं अंतं काहिइ। एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सपत्तणं जाव निक्खेवओ॥३॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥१॥ ५०१
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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