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- . . : . -:-. निग्यावलिका पत्र जिन् ? दुष्पनि त । तनः बलु म मामिलानन देवन द्वितीयमपि तृतीयमान्यत्रमृतः मन नं देवयंत्रवादीन-कथं खलु देवानुप्रिय ! मम दुप्पजिनम
नतः बन्नु य देवः मामिनं ब्राह्मण यंत्रमगदीन-एवं खलु देवानुप्रिय! व पावसाहतः पुन्यादान यच्चालिकं पत्रानुनतानि मममिक्षात्रतानि द्वादशविध पावश्यम परिपन्ना, नतः बल नवाज्यता कटाचिन अपायुदर्शनेन
मात्रा- कुटुम्ब० पाचन चिन्तिनं दंत्र उच्चानि बाचन यत्रैवाऽठोक. ' मामिल मौन रहता है । अनन्नर उम मामिलने उम देवनास कुवाग निवारा कई जानेपर हम प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! मेरी प्रत्रज्या दुष्प्रया क्यों है ?
___मामिलंक हम प्रकार पूछने पर उम देवनाने हम प्रकार कहना प्रारम्भ किया
सामिन्टके हम प्रकार पृछनपर इम देवनाने हम प्रकार कहना आरम्म क्रिया
हे देवानुप्रिय ! तुम मुमुच जनांस संव्य पाश्र्व अर्हन के ममीप पाच अनुत्रन इस प्रकार शिक्षाबत. हम प्रकार बारह व्रतस्प आवक धर्मको स्वीकार किया। उसके बाद अमावुक दशनस तुमने इस धर्मका परित्याग कर दिया | अनन्तर एक समय मध्य गनिमें कुटुम्य जागरणा करते हुए तुम्हारे मन में विचार पैदा हुआ कि-'गङ्गाके किनाग्में तपस्या करनेवाले विविध प्रकार वानप्रस्थ नापम है, उन नापमोंमें जो दिशामाक्षक नापम है उनके पाम माहेकी कडादिया कन्नछु और नाम्वका तापमपात्र बनवाकर उस १२४०३.ivar
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श्रीनवना
माय:देशानुपथ! में सुना तपाई नी म जतन lyr: नवी मन या धर्मना वाधार या. ત્યાર પછી અધુના છી એ બ્રા અને પરિયાણ કર્યું. પછી એક જ
રાત્રિમાં કુટુંબ જબરછ કરતાં કરતાં તમારા મનમાં એવા વિચાર ઉપન્ન થયા કે, •४ पट्या दुरना बानापसनतामाभा
तय न पाये, वाहनी 28 तान ताप