SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 952
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमयाकरणसूत्रे वक्तव्या। तथा-'चउसट्ठीमहिलागुगा' चतुप्पष्टिमरिलागुणा आलिगनातीनामष्टानां प्रत्येकस्याष्टनिधत्वेन ये चतुप्पप्टिसरयका महिलागुणास्तेऽपि च न वक्तव्याः। तथा- देसजाइकुलरूपणामनेत्यपरिजणकहाओ' देगनातिलरूपनामनेपथ्य परिजनकथाः तत्र-देशकथा-लाटादिदेशमम्बन्धिसोणा वर्णनम् , यथा-'लाटयः और कपाल आदि से युक्त स्त्री दुर्भग होती है, इस प्रकार ये स्त्रीयो की सुभगता और दुर्भगता से सय र रग्बने वाली फया मी साधु फो नही कहना चाहिये । तथा (चउसहि महिलागुणाण च) जिस कमा में स्त्रियो के चौसठ गुणों से सयध हो, अर्थात् सियों के चौसठ गुणों को लेकरजो कथा चलती हो वह भी साधु को नहीं करनी चाहिये । आलि. गन आदि आठ गुण प्रत्येक आठ २ प्रकार के होते है, उस तरह ८xc=६४ प्रकार के महिलाओं के गुण कहे गये है। सो ये चौसठ ६४ प्रकार के महिलाओ के गुण भी कथामें चर्चनीय नरी होनी चाहिये। तथा (देसजाति कुलस्वणामनेवत्यपरिजणकाओ इत्थियाग अण्णावि य एवमाइयाओ सिंगारकलुणाओ सजमसभा घाओवघाउयाओ बमचेर अणुचरमाणेण न कहेयव्वा न सुणेयान चिंतियया) देश,जाति, कुल, रूप, नाम, नेपथ्य, परिजन, इनसे सबध रखनेवाली स्त्रियोंकी कथाएँ भी नही कहनी चाहिये-लाटादि-देश सनधी स्त्रियों का वर्णन जिस कथामे होता है वह देश कया है, जैसे-लाट देश की स्त्रिया बहुत ही कोमल કપોળ વાળી સ્ત્રી વિરલ હોય છે... આ રીતે સ્ત્રીઓની સુભગતા કે વિરલતા साथै सय ५ रामती ४था ५९४ साधुणे की नसे नही “चउसद्धि महिला गुणाण च" २ थाना स्त्रीयाना यास शुणेसाथे स५५ डाय એટલે કે સ્ત્રીઓના ચોસઠ ગુણોને અનુલક્ષીને જે કથા ચાલતા હોય તે પણ સાધુએ કહેવી જોઈએ નહી આલિંગન આદિ આઠ ગુણોમાને પ્રત્યેક ગુણ આઠ આઠ પ્રકારનું હોય છે, આ રીતે ૮૪૮૬૪ પ્રકારના સ્ત્રીઓના ગુણ બતાવ્યા છે તે તે ચેસઠ પ્રકારના સ્ત્રીઓના ગુણ પણ કથામાં ચર્ચાવાને योग्य नथी तथा "देसजातिकुलरूपणाम-नेवस्थ-परिजण-कहाओ इस्थियाण अण्णा वि य एवमाइयाओ कहाओ सिगारक्लुणाओ सजमव पचेरघा ओवनाइयाओ बभचेर अणु चरमाणेण न कहेयच्चा न सुणेयव्या नचिंतियव्या" देश,जति सुज,३५,नाम, नेपथ्य, પરિજન, વગેરે સાથે આ બધ રાખનારી સ્ત્રીઓની કથાઓ પણ કહેવી જોઈએ નહી લાટાદિ દેશની સ્ત્રીઓના વર્ણન જે કથામાં હોય તે દેરા કથા છે, જેમકે “લાટ દેશની સ્ત્રીઓ બહુ જ મૃદુ વચન વાળી અને નિપુણ હોય
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy