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दशिनी टीका अ ५ सू० ब्रह्मचारीणामनाचरणीयादिनिरूपणम्
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मूलम् - इम च अवभचेरवेरमणपरिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहिय अत्तहिय पेच्चाभाविय आगमेसिभद्द सुद्धनेयाउय अकुडिल अणुत्तर सव्वदुक्खपात्राण विउसमण ॥ सू०५ ॥ टीका-' इम च' इत्यादि
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'इम च' इद च ' पायण ' प्रवचनम् 'अनभचेरवेरमणपरिरक्खणडयाए' अब्रह्मचर्यविरमणपरिरक्षणार्थं चतुर्थ महानतरक्षण निमित्त भगवता कथितम् आत्महित, आत्महितकारकम् आगमिष्यद् भद्र शुद्ध नैयायिकम् अकुटिलम् अनुत्तर सर्वदुःखपापाना व्युपशमनम् । एषामर्थ पूर्व तृतीयसवरद्वारे प्रोक्तः ॥ ०५ ॥
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के घातक हैं, अत' साधु को अपने मूल गुणों की रक्षा करते हुए तप सयम एव ब्रह्मचर्य से अपनी आत्मा को भावित करते रहना चाहिये । इस तरह से उसका ब्रह्मचर्य व्रत दृढ़तर हो जाता है ॥ सृ० ४ ॥
फिर कहते हैं-' इम च ' इत्यादि० ।
टीकार्य - ( इम च पावयण ) यह प्रवचन ( अबभचेर वेरमणपरि रक्खणट्ट्याए भगवया सुकहिय ) अब्रह्मचर्य विरमण की परिरक्षा के निमित्त भगवान् ने कहा है । ( अत्तहिय) यह आत्मा का हितकारक है, (पेच्चाभाविय) परलोक में भी शुभफल का दाता है । ( आगमेसिभ६ ) इसी कारण यह भविष्यत् काल मे कल्याणप्रद कहा गया है । (सुद्ध ) निर्दोष होने से यह शुद्ध है । (नेयाउय ) वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशक प्रभु द्वारा भाषित होने से न्यायसंपन्न है । ( अकुडिल )
ન ગણવુ, એ બધુ બ્રહ્મચર્ય વ્રતનુ ઘાતક થાય છે તે સાધુએ પેાતાના મૂળ ગુણાની રક્ષા કા કરતા તપ, સયમ અને બ્રહ્મચદ્રતથી આત્માને ભાવિત કરતા રહેવુ જોઈ એ આ પ્રમાણે કરવાથી તેનુ બ્રહ્મચર્ય વ્રત વધારે દૃઢ થતુ જાય છે સૂ ૪ ૫ વળી સૂત્રકાર કહે છે— “
इम च " इत्यादि
अर्थ
27 इम च पानयण આ પ્રવચન (( अब भचेर विरमणपरिरक्खणट्टयाए भगवया सुकहिय " मा ब्रह्मययं विग्भणुनी परिरक्षाने निभित्ते लगवाने हे “अत्तहिय " ते आत्माने भाटे हितजर छे, “पेच्चाभा विय " परसोभा पशु शुल इज हेनाइ छे " आगमेसिभद्द ” ते अरखे ते ભવિષ્યકાળમાં કલ્યાણ દાયક મતાવવમા આવ્યુ છે. सुद्ध ” નિર્દોષ હોવાથી ते शुद्ध छे " नेयाज्य " वीतराग, सर्वज्ञ भने हितोपदेश प्रभु द्वारा उथित होवाथी न्याय युक्त े, ' अकुडिल " ऋभुलावनु न होवाथी अञ्जुटिसके
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