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________________ व्याकरणसूत्रे ò૮ =वारवारम्, 'कखमीस करचरण यणधोरण वाहणगायकम्मपरिमद्दणाणुलेवण चुणनासधूरणसरीरपरिमडणनाउमय हसिय भणिय नहगीयापन नहगजलम पेच्उणवेलनग' कक्षाशीर्ष करचरण नदन मानगान कर्मपरिमर्दनानुलेपनच् र्णवासधूपनशरीरपरिमण्डन नाकुशिता सितभणितनाय्य गीतनादित नटनर्त्त जल मलमेक्षणम्पिक तन कक्षा नहुउयमूलाधोवर्त्तिस्थानम्, शीपं शिरः, करचरण = प्रसिद्धम्, पदन=मुख, तेषा यद् धार=पान, साधन हस्ताभ्यां पादपीडन मात्र+म= शरीरपरिकर्म= समर्दनादि कर्मपरिमर्दन = सर्वतः शरीरमर्दनम्, तथा अनुलेपनचूर्णवास वृपनशरीरपरिमण्डनम्, तT अनुलेपनम् शरीरे चन्दनानुलेपनम् , चूर्णवास = मुगन्धिद्रव्यचूर्णम्, धूपनम् = अगुरु धूपादिकरणम्, शरीरपरिमण्डनम् = खादिभिः शरीरशृङ्गारकरणम्, तथा याकुशिक नखात्र केशसमारचनम् = कुश=+रचारित्र तदेवप्रयोजन यस्य तद्वाकुशिक श्रृगारप्रयोजनक नखकेशन खसमारचनादिक, हसित -हासः, भणित - खीणा विकृतभणनम्, नाट्य = नटकर्म, गीतगानम्, वादि (अभिक्खण कक्खसीस कर-चरण वयण-धोवण सना गायकम्मपरि महगाणुलेवेण चुण्णवासधूवणसरीरपरिमडणवाउसिययहसियभणिय न -गीय वाइय नड नग जल मल पेच्ण वेलनग) वारपार काख मस्तकहाथ-पैर और मुहका बोना, दोनो हाथों से शरीरका दानना, गोत्रकर्मशरीर की सफाई पर विशेष ध्यान रखना परिमर्दक-दूसरो से शरीर को रातदिन दयवाना, अनुलेपन शरीर पर चदन का बार २ लेप करना, चूर्णवास सुगन्धित द्रव्यो के चूर्ण से, धूपन अगुरु आदि के धूप से शरीर को अलंकृत करना, तथा वाकुशिक - श्रृगार के प्रयोजन को लेकर नख, वस्त्र औरकेशों को समारना तथा हसित -हासका हँसी मजाक-मरकरी आदि का करना, भणित-स्त्रियों के जैसा गाली आदि भाण्डवचनों का बोलना स्नान ४२वु, तथा " अभिक्सण कखसीस, कर, चरणनयण- घोवण-सवाहण गायकम्मपरिमद्द गणुले पण चुण्ण - वासवूण - घरीर - परिमडणत्रा उसियहसिय- भणियनह-गीय - वाइय - नड - नट्टग - जल - मल्ल - पेच्छण - वेलाग " वारवार भगत, भाथु, હાથ-પગ અને માને ધાવુ, અને હાથથી શરીરને દખાવવુ, ગાત્રકમ--શરીરની સ્વચ્છતા પર વધારે ધ્યાન આપવુ, પરિમન-બીજા પાસે શરીરને રાતદિવસ દુખાવવુ, અનુલેપન~વારવાર શીરે ચદનને લેપ કરવે, ચૂર્ણોવાસ–સુગ ધિત દ્રવ્યોના ચૂર્ણથી, ધૂપન અગસ્ત્ર આદિના ધૂપથી શરીરને અલ કૃત કરવુ, તથા વાકુશિક-શ્રૃંગારને માટે નખ, વસ્ત્ર અને કેળને સમારવા તથા હૅસિત ઠઠ્ઠા કરી સ્માદિ કરવુ, ભણિત–સ્રીએના જેવી ગાળો આદિ અશિષ્ટ વચના
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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