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________________ ७८८ प्रश्नयाकरण 'णदणषण ' नन्दनयन 'पर' पार 'दुमेनु' द्रुगेम-रक्षेषु 'जहा' यथा'सुदसणा' सुदर्शना-मुदर्शनाख्या 'जबू' जम्बू-त्रीविङ्गः क्षविशेषः, मा "विस्मयजसा ' विश्रुतयशा:-यशसा पिख्याता । जम्या कि नाग यशः ? इत्याह -'जीय यस्याः 'नामेण' नाम्ना अय 'दोरे 'दीपो-जस्यूद्वीपोऽस्ति, तथैवेद ब्रह्मचर्य व्रतानां मध्ये रियातम् । तथा-'जहा चेर' यथा चैव 'तुर गवई ' तुरगपतिः अश्वसेनायुक्त. 'गयाई 'गजपति: गनसेनायुक्त 'रहबई' स्थपतिः-रथसेनायुक्तः नरबई । नरपति:नरसेनायुक्तो 'राया' राजा विश्रुतः, 'जहा चेव' यथा चैव ' रहिए ' रथिके-रथारोहिमध्ये 'महारहगए' महार थगत महारथारोही विश्रुत' । तथैव ताना मध्ये इद त विश्रुतम् प्रसिद्धम् एवम् एवम्प्रकाराः 'अणेगगुगा' अनेकगुणाः अवरत्वविश्रुतत्यादयोऽने केगुणा 'एगम्मि वभचेरे ' एकस्मिन् ब्रह्मवर्ये 'अहीणा' अधीना' स्वाधीना. भवन्ति, एकस्मिन् ब्रह्मचर्ये समाराधिते सति सर्व गुणाः समागत्य तस्मिन् पुरुपे समावि (वणेसु जहा णदणवण पवर ) वनो में जैसे नदनवन श्रेष्ठ है, (दुमे सु जहा सुदसणा जविस्सुयजसा ) वृक्षो में जैसे जब वृक्ष प्रसिद्धयश सपन्न है कि (जीयनामेण अय दीवो) जिसके नाम से यह द्वीप जघु द्वीप कहलाता है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रतश्रेष्ठ है । तथा (तुरगवई, गयवई, रवई, नरवई, राया जहाचेव रहिए महारहगए, एवमणेगगुणा एगम्मि बभचेरे अहीणा भवति ) जैसे अश्वसेनायुक्त, गज सेनायुक्त, रथसेनायुक्त, नरसेनायुक्त, राजा प्रसिद्ध होता है, तथा रथारोहियों के बीच मे महारधारोही प्रख्यात होता है, उसी तरह व्रता में यह ब्रह्मचर्यव्रत प्रख्यात है। इस तरह प्रवरत्व, विश्रुतत्व आदि अनेक गुण एक इस ब्रह्मचर्य में अधीन होते हैं, अर्थात् एक ब्रह्मचर्य के आराधित कर लेने पर समस्तगुण आकार उस पुरुष में आश्रित हो वण पवर " पनामा म न हनवन श्रेष्ठ छ, “ दुमेसु जहा सुदसणा जबू वि म्सुयजसा" वृक्षामा २भ मूवृक्ष प्रसिद्ध यश सपन " जिय नामेण अय दीवो" ना नामथी मा ५ नमूद्वीप उपाय छ, मे प्रमाण मतभा प्रदायर्य नत श्रे४ छे तथा "तुरगवई, गयवई, रहगई, नरवई राया, जहा चेव रहिए महारहगए, एवमणेगगुणा एगम्मि बभचेरे अहीणा भगति "म હયદળવાળ, ગજદળવાળે, રથદળવાળા અને પાયદળવાળે રાજા પ્રસિદ્ધ હોય છે તથા રથારેહિરોની વચ્ચે મહારથાહી પ્રખ્યાત હોય છે, એ જ પ્રમાણે ઘતેમાં પણ બ્રહાચર્ય વ્રત પ્રખ્યાત છે આ પ્રમાણે શ્રેષ્ઠતા, વિશ્રત, આદિ અનેક ગુણ આ એક બ્રહ્મચર્યને આધીન હોય છે, એટલે કે એક બ્રહમચર્ય
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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