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________________ ७८६ प्रमायाकरणसूत्रे क्षेत्रस्य महत्चादिन्द्रयस्यानि शुभपरिणामत्वाचा प्रघर । ' समासुय ' सभामु प्रतिभानपिमान भाग्निीपु मुर्मसभोत्पातमभाऽभिपसमाऽकारममाव्यव सायसभासु च मध्ये 'जहा' यथा' मुहम्मा ' मुधर्मा समा प्रपरा 'भवे ' भवति तथैवेद ब्रह्मचर्य व्रतेपु प्रार भवति । तथा-'ठिइस स्थितिपु-आयुकेषु मध्ये 'लवसत्तमन्ध' लसप्तमेव अनुत्तरदेवमास्थितियया प्ररा। 'दाणाण घेव अभओदाण' दोनाना मये अभयदानमिवेद ब्राह्मचर्य मारम् । 'फलाण' कम्बलाना मध्ये 'फिमिराभो चेर' मिराग इ-कृमिरागकम्पल इस कमे रक्तकीट विशेपस्य राग इस रागो यस्य कम्पलस्य भीम सम्बर कमि राग कम्पल प्रोच्यते, रक्तकम्मल इत्यर्थः, तथा-'सत्रयणे' सहनने-पहननम ये वनऋपभादीना पण्णा सहननाना मध्ये 'रज्जरिसभे' जनपभ सानन परम् 'सठाणे' सस्थाने पइविधसस्थानमध्ये यथा 'सम उरस' समचतुरस्र सस्थान (सभासु जहा सुहम्मा भवे सभाओं में जैसे सुधर्मा सभा श्रेष्ठ होती हैं, अर्थात् सुधर्मा सभा उत्पात सभा, अभिपेकसभा, अलकारसभा, व्यवसायसभा, इन सभाओ में जैसे सुधर्मा सभा सय से श्रेष्ट मानी जाती है उसी प्रकार यर ब्रह्मचर्यचत भी समस्त प्रतो मे श्रेष्ठ माना जाता है । तथा (ठिईसु जहा लवसत्तमव्यपवरा) आयुओं में अनुत्तरविमानवासी देवों की जैसे आयु उत्तम मानी जाती है और (दाणाण चेव अभयो दाण) दानो के बीच में जैसे अभयदान श्रेष्ठ माना जाता है उसी तरह यह ब्रह्मचर्यत्रत भी समस्तवतो में प्रधान व्रत माना जाता है। तथा (कवाण किमिराओ चेव) करलो में जैसे रक्त कम्बल, (सघयणे चेववज्जरिसभे) छह सहननो में जैसे वज्रऋषभ सहनन, ( सठाणे चेव समचउरसे ) छह सस्थानो मे जैसे समचतुरप्र श्रेष्ठ हाय छ, “ सभासु जहा सुहम्मा भवे " समायामा म सुधर्मा સભા શ્રેષ્ઠ હોય છે, એટલે કે સુધર્માસભા, ઉત્પાદસભા, અભિષેક સભા, અલ કારસભા વ્યવસાયસભા, એ સભાઓમાં જેમ સુધર્માસભાને શ્રેષ્ઠ માનવામાં આવે છે, એ જ પ્રકારે આ બ્રહ્મચર્ય વ્રતને પણ સર્વે તેમાં શ્રેષ્ઠ માનવામાં साव छ तथा “ ठिइसु जहा ल्वसत्तमव्वपवरा" मायुध्योमा रेभ मनुत्तर विमानवासी वानु मायुष्य भत्तम भनाय , गने “ दाणाण चेवअभ भोदाण" हानामा म मलयान श्रेष्ट भनाय ), प्रभारी सा प्रशायर्य तपय समस्त प्रतीभा श्रेष्ठ भनाय तथा “कालाण किमिराओ चेव" भगोमा रेभ २४त मण सधयणे चेव वन्नरिसभे" छ सननामा म R षम सहनन, "सठाणे चेव समचउर से"छ सस्थानामा सभयतुरख
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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