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________________ مای प्रमध्याकरण किंचि' यत्किचित् ' सेज्जीबहिस्स' शग्योपधेः भग्योपकरणस्य 'अट्ठा' अर्या य हेतवे 'गेण्हइ' गृहानि, तत् ' उग्गहे ' अपनहे-आशायाम् 'अदिणे' अ दत्ते अदत्तायाम् , अर्थात् तत्तद्वस्तु सामिन आयाममाप्तया सत्या' गेण्हिउ' ग्रहीतु साधूना 'न कप्पइ ' न कल्पते, 'ने' यत्-यम्मात् कारणात् 'इणिहगि' अहन्यहनि प्रतिदिनम् ' उग्गई ' अपग्रहम् 'अणुणपिय' अनुशाप्य प्राप्य तत्तस्तु साधुभिः 'गेण्डियय ' ग्रहीतव्य भाति । उपसहरनाह-परम् अनेन प्रकारेण 'उग्गहसमिइजोगेण' अवग्रहसमितियोगेन-मनग्रहः-शम्योपध्यर्थ तृणाघादा नस्य तत्तत्स्वामिन आशा तन या समिति.सम्यहमचिस्तया यो योग-सबन्धस्तेन भावितोयासितः । अतरप्पा' अन्तरात्मा जीयो नित्यम् , ' अहिर कोंपल, कन्द, मूल, तृण-सामान्य तृणविशेप, काष्ठ-लकड़ी, शर्कराककड, इनमें से जिस किसी पदार्थ को जो (सेज्जोवहिस्स अट्ठाण गेण्इ) शय्योपकरण के निमित्त लेता है, परन्तु ( उग्गहे अदिण्गम्मि गेण्हिउ न कप्पड) इन २ वस्तुओं के स्वामी यदि उन • वस्तुओंको लेने की आज्ञा नहीं देते हैं तो साधुको इन वस्तुओंफा लेना नहीं कल्पता है (जे) इसलिये जो (हणि हणि उग्गह अणुण्ण वि य नेटिव) प्रतिदिन उन २ वस्तुओं को लेनेके लिये उनर वस्तुओंके स्वामी की आज्ञा साधु को लेनी चाहिये, और आज्ञा प्राप्त हो जाने पर ही उन२ वस्तुओं को लेना चाहिये। (एव उग्गहसमिहजोगेण भाविओ अतरप्पा निच्च अहिकरण, करण कारावणपावकम्मविर दत्तमणुण्णाय उग्गहरुई भवह) इस प्रकार से अवग्रहसमिति के योग से-शय्योपधिके निमित्त तत्तद्वस्तुओं के स्वामी की आज्ञा प्राप्तकर तृणादि को के लेने मे सम्यक् प्रवृत्ति के साथ सबध કદ, મૂળ, તૃણ સામાન્ય ઘાસ, કાષ્ઠ–લાકડા, શર્કરા–કકડ, તે બધામાથી કઈ पर पहायने रे " सेज्जोवहिस्स अट्टाए गेहद" शय्या मनापाना साधन तश से छ, ५g “ उग्गहे अदिण्णम्मि गेण्हिउ न कप्पइ" aa वस्तुमाना માલિક જે તે તે વસ્તુઓ લેવાની રજા ન આપે તો સાધુઓને તે વસ્તુઓ सेवा ४६५ती नथी "जे' तथी "हणि हणि उगह अणुण्णविय गेण्डियन्व" प्रात દિન તે તે વસ્તુઓ લેવાને માટે તે તે વસ્તુઓના માલિકની મજૂરી સાધુએ सेवा मे, मने भभूरी भण्या पछी ते ते वस्तु देवी " एव उग्गह समिइजोगेण भाविओ अतरप्पा निच्च अहिकरण, करणकारावरणपावकम्म विरए दत्तमणुण्णाय उग्गहरुई भवइ" मा प्रभाये अपड समितिना यायोશપધિને નિમિત્તે તે તે વસ્તુઓના માલિકની આજ્ઞા મેળવીને તૃણાદિકોને
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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